________________ नित्य नियम पूजा दोहा-माजन करि वेदी विष, सिंहासन परि थापि / प्रातिहार्ययुत निरख जिन, यजन करो गुन जापि // // पुष्पांजलिं / / / ___ लघु पंचामताभिषेक भाषा शुद्ध घृत--दुग्ध आदिसे पंचामृत अभिषेक करना हो तो यह पाठ बोलना अथवा पंचामृतके अभावमें सिर्फ जलधारासे काम लेना। दोहो-श्री जिनवर चौवीस वर, कुनयध्वांतर भान / अमितवीर्य दृगबोधसुख-युत तिष्ठो इहि थान / नाराच छन्द : गिरीश शीश पांडपै, सचीश इश थापियो महोत्सवो अनन्दकन्दको, सबै तहां कियो।। हमैं सो शक्ति नाहिं व्यक्त देखि हेतु आपना / यहां करै जिनेन्द्रचन्द्रकी सुबिंब थापना / पुष्पांजलि क्षेपणकर श्रीवर्णपर जिनबिम्बकी स्थापना करें। कनकमणिमय कुम्भ सुहावने, हरि सुक्षीर भये अति पावने / हम सुवासित नीर यहां भरें, जगतपावन पाय तर धरै / / पुष्पांजलि क्षेपणकर वेदीके कोनोंमें चार कलश स्थापना करें। शद्धोपयोग समान भ्रमहर, परम सौरभ पावनो। आकृष्ट भृङ्ग समूह गंग-समुद्भवो अति भावनो // मणिकनककुम्भ निसुम्भकिल्विष, विमल शीतल भरि धरौं। श्रम स्बेद मल निरवार जिन त्रय धार दे पायनि परो 4 // ॐ ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य जलेनाभिषिच्ये /