________________ 32 ] नित्य नियम पूजा अति मधुर जिनधनि सम सुप्राणित प्राणिवर्ग सुभावसों। बुधचित्तसम हरिचित नित, सुमिष्ट इष्ट उछावसों / / तत्काल इक्षुसमुत्थ प्रासुक रतनकुम्भ विर्षे भरौ / यम त्रास ताप निवार जिन त्रय धार दे पायनि परौ / 5 / ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थ अद्य इक्षुरसेनाभिषिच्ये / निस्तप्त-क्षिप्त सुवर्ण-मद-दमनीय ज्यो विधि जैनकी / आयुप्रदा बलबुद्धिदा, रक्षा सु यों जिय सैनकी / तत्काल मन्थित क्षीर उत्थित, प्राज्य मणिझारी भरौं / दी अतुलबल मोहि जिन, त्रय धार दे पायनि परौं / 6 / ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयाथं अद्य घृतेनाभिषिच्ये / सरदभ्र शुभ्र सुहोटकद्युति, सुरभि पावन सोहनो / क्लीवत्वहर बल धरने पूरन पय सकल मनमोहनो / / कृतउष्ण गोथनतै समाहृत घट जटितमणि मैं भरौं / दुर्बल दशा मो मेट जिन त्रय धार दे पाय ने परौं / ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य दुग्धेनाभिषिच्ये / वर विशद जैनाचार्य ज्यो मधुराम्लकर्कशता धरैं / शचिकर रसिक मन्थन विमन्थन नेह दोनों अनुस” / गोदधि सुमणिभृगार पूग्न लायकर आगे धरौं / दुखदोष कोष निवार जिन त्रय धार दे पायनि परौं / 8 // ॐ ह्रीं श्रीमतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थं अद्य दध्यानाभिषिच्ये। "सर्वोषधी मिलायके भरि कंचन भृङ्गार / जजौ चरण त्रय धार दे, तारवार भवतार // 9 // ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं सकलकर्मक्षयार्थ अद्य सवौषधिभ्यामभिषिच्ये।