________________ नित्य नियम पूजा [ 17 मंत्र- ह्रीं....................................." इति घृतस्नपनम् / / अर्घ-उदक चन्दन...................."अर्घ निर्वपामीति स्वाहा (दुग्धाभिषेक 4) सम्पूर्ण-शारद-शशांकमरीचिजाल स्पन्दैरिवात्मयशसामिन सुप्रवाहैः / धीरैर्जिनाः शुचितरैरभिषिच्यमानाः / ___ सम्पादयन्तु मम चितसमीहितानि // 23 // मंत्र- ह्रीं......... ............"इति दुग्धाभिषेकस्नपनम् / अर्थ उदक नन्दन ........... अर्घ निर्मपामोति स्वाहा // __ ज्येष्ठजिनवर जयमाला ( भट्टारक ब्रह्मकृष्णकृत ) अमरनयरिसम नयरि अयोध्या नाभिनरेन्द्र पसे निजबुध्या। सुरपति मेरुशिखर ले चढिया कनक कलश क्षीरोदधिभरिया !! तसधर राणी मरुदेवी माया युगपति आदि जिनेश्वर जाया। ज्येष्ठमास अभिषेक जु करिया अष्टोत्तर शत कुंभजु भरिया / / मभकत जलधारो संचरिया ललितकलोल धरषि उतरिया / जय जय सुरनिकरी उच्चरिया इंद्रइंद्राणी सिंहासन धरिया / अंग अनंग विभूषण धरिया कुडलहार हरितमणि जड़िया। नोट-* जिस महिने में अभिषेक किया जाय उस महिनेका नाम बोलना चाहिये / यह जयमाला दुग्धाभिषेकके समय बोली जाती हैं। प्रत्येक पंक्तिके बाद 'सुरपति मेरुशिखर' वाली पंक्तिको दुहराना चाहिये /