________________ नित्य नियम पूजा .[ 221. सब जल फल आदिक अर्घ, तुम गुण गावत हूं। पद पाऊ नाथ अनर्घ, शीश नमावत हूँ // देहरे० / / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तयेऽयं निर्व० पंचकल्याणक वदी चैत सुपंचमी आई, तज वैजयंत जिनराई। लक्ष्मणा मात उर आये, सुर इन्द्र जजे सिरनाये / 0 ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभ जिनेन्द्राय चैत्रवदी पंचमीको गर्भमङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा / / कलि पौष एकादशि आई, जन्मे थे त्रिभुवन राई / सुर चन्द्रपुरी मिल आये, अभिषेक सुमेर कराये / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय पौषकृष्णा एकादशीको जन्ममङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा। प्रभु भवतन मोग अपारा, निस्सार जाय जग सारा / वदि पौष एकादशि प्यारी, वनमें जा दीक्षा धारी / / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय पौषकृष्ण एकादशीको तपो मङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा / चहूँ कर्म घातिया नाशा, शुम केवल ज्ञान प्रकाशा। फाल्गुन शुभ सप्तमी कारी, बना समोसरण मनहारी॥ ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुनवदी सप्तमीको केवलज्ञान प्राप्ताय अर्घ नि० स्वाहा / सम्मेद शैल प्रभु नामी, है ललित कूट अभिरामी / फाल्गुन सुदि सप्तमी चूरे, शिव नारि वरिविधि कूरे / ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचंद्रप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुनसुदी सप्तमीको मोक्षमङ्गल मण्डिताय अर्घ नि० स्वाहा /