________________ 174 ] नित्य नियम पूजा - - - घेवर घृतसाजे खुरमाखाजे, लाडू ताजे थार मरे / नैनन सुखदाई तुरत बनाई कीरत गाई अग्रघरे / पद्मा० / नैवेद्यं // दीपक शशि जोतं तभक्षय होतं ज्ञान उद्यात छाय हो / ममकुमतविनाशी मतप्रकाशी, समताभाषा सरना / पद्माः / दीपं / / कृष्नागुरु धृष सुरभि अनूप मनवचरूप सेतु हौं / दशदिशा लिखाये बाध बजाये, तुम चरन खेवतु हौं / पद्मा० / धूपं / / बादाम सुपारी श्रीफलभारो, आनन्दकारी भरियारी : तम चरन चढ़ाऊँ चित उमगाऊँ वांछित पाऊँ जहा।। एमा० फलं।। जल चन्दन अक्षत पुष्प चरु चित, होप धूपकल लायघरे / शुभ अर्घ बनायो पूजन धायो, तूर बजाया नृत्य करे / / पद्मा० / अघ|| अथ जयमाला श्री पद्मावतो माय शुम, अनेक तन शोभते / अब वर्णन जय माला, सुनौं सुजन मन लायके / / 1 / पद्धरि छन्द जय तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ, प्रणम् तिरकाल नवाय माथ / जिनमुखसे बानी खिरी सार, सब जीवनको आनन्दकार / / छमस्थ अवस्थाको जुवर्ण सुनियो भवि चित लगाय कर्ण / इकदिन गज चढ श्री पार्श्वनाथ,अरु सखा अनेकों लिये साथ