________________ नित्य नियम पूजा [ 175 गंगा तट आये मोद ठान तहां तापस कुपत कर अयान / इक काष्टथूलमें नाग दोय, वापसको कछु नहिं ज्ञान सोय। वह काष्ठ अग्निमें दिया लगाय, उरगनिकों संकट परौ आय यह भेद जान श्रीपार्श्वदेव, तापसके ढिंग आये स्वमेव // तासों बोले नहिं ज्ञान लाय, हिंसा भय तप करि कुग तेहोय चीरौ जो काष्ठ तत्काल साय, काढ़े सुनागिनी नाग दोय // तिनके जु काष्ठ गत रहे प्राण, पारस प्रभु करुणाधर महान तिनके वचनामृत शुभ महान, निमेल भावोंसे सुने कान // तत्काल पुण्यसमुदाय होय, उत्तम गति बन्ध कियो सुदोय / सन्यास कियो मनको लगाय, धरणेन्द्र सु पद्मावती लहाय।। सोही पद्मावती मात सार, नित प्रति पूजौं मैं बार बार / बहुत जीवन उपकार कीन, मेरी बारी मैं बहुत दीन / जल आदिक वसु विधि द्रव्यलाय, गुणगान गाय बाजे बजाय घननन घननन घण्टा करन्त तननं तननं नूपुर तरन्त / / ताथेई थेई२ घुघरु करन्त, झुकि झुकि झुकि फिर पग धरंत / बाजत सितार मिरदंग साज, वीना मुरली मधुरी अवाज // करि नृत्य गान बहुगुण बखान, कहलों महिमा वरन अयान "सेवक' पर सदा सहाय कीन, विनती मोरी सुनियो प्रवीन / पत्ता-पद्मावति माता तुमगुण गाता आनन्ददाता कष्ट हरौ / मुनि मातामोरी शरणजु तोरी,लखि मम ओरी धीर धरौ॥ ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्री पद्मावती देव्यो पूर्णाघ /