________________ नित्य नियम पूजा प्रभुजी म्यारो तो मनडो थामें धुल रह्यो / ज्या चकरी बिच रेशम डोरी महाराज / ।यो मन० / / प्रभुनी तीन लोक में हैं जिन बिम्ब / कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजस्यां महाराज . यो मन. प्रभुजी जल चन्दन अक्षत पुष्प नेवेद्य / दीप धूप फल अर्घ चढाऊ महाराज / जिन चैत्यालय महाराज, सब चैत्यालय जिनराज |यो प्रभुजी अष्ट द्रव्य जु ल्यायो बनाय / पूजा रचाऊ श्री भगवानकी महाराज ! यो मन / अरिहंता छियाला सिट्ठा मूर छत्तीसा। उवज्झाया पणवीसा साहूणं होती अडवीसा / (निम्नलिखित अर्घ बोलते समय जलधारा छोड़ते रहना चाहिये) ॐ ह्रीं श्रीं अरहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सवसाधु पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः दर्शनविशद्धियादि पाडशकारणेभ्यो नमः उत्तम क्षमादि दशलक्षणधर्मेभ्योः सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चारित्रेभ्या नमः भूत-भविष्यत-वर्तमानकालचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो नमः सिद्धक्षेत्रेभ्यो नमः अतिशयक्षेत्रेभ्यो नमः अद्य संवत.......मध्ये........मासे .......पक्षे...... तिथौ......समये पूजायां सकलकर्मक्षयार्थ अन पदप्राप्तये जलाअर्घ महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा / भाव जा बन्दनास्तवसमेतं कायोत्सर्ग करोम्यहम /