________________ नित्य नियम पूजा..........[ 165. ताके पुत्रमित्र धन जोवन, सुख समाज गुन मिलै अपार / -सुरपद भोग भोगी चक्री हृ, अनुक्रम लहै मोक्षपद सार // 2 इत्याशीर्वादः / महा अर्घ। प्रभुजी अष्ट द्रव्यजु ल्यायो भावसों / प्रभु थांका हर्ष हर्षगुण गाऊ' महाराज ! यों मन हरख्यो प्रभु थांकी पूजाजी रे कारणे / प्रभुजी थांकी तो पूजा भवि जीव जो करें / / ताका अशुभ कर्म कट जाय महाराज / यो मन / प्रभुजी इन्द्र धरणेन्द्रजी सब मिली गाय / प्रभुका गुणां को पार न पायो महाराज // यो मन ! प्रभुजी थे छो जी अनन्ताजी गुणवान / थाने तो सुमरयां, संकट परिहरे महाराज / / यो मन०॥ प्रभु थे छो जी साहिब तीनों लोक का। जिनराज मैं छू जी निपट अज्ञानी महाराज / यो मन०॥ प्रभु थांका तो रुपको निरखन कारणे / सुरपति रचया छ नयन हजार महाराज / / यो मन०॥ प्रभुजी नरक निगोदमें भव भव मैं रुल्यो / जिनराज सहिया छै दुःख अपार महाराज ।यो मन०॥ प्रभुजी अब तो शरणोजी थारों में लियो / किस विधि कर पार लगावो महाराज // यो मन० //