________________ 164 1 नित्य नियम पूजा तमही सब विघ्न विनाशन हो, तुमही निज आनन्द भासनहीं तुमही वित चिंतत दायक हो,जगमांहि तुमही सब लायकहो तुमरे पन मंगल मांहि सही, जिय उत्तम पुण्य लियो सवही हमको तभरी शरणागत हैं, तमरे गुनमें मन पागल है / / 11 प्रभु मो हिय आप सदा वसिये, जबलों वसुकर्म नही नसिये तबलों तम ध्यान हिये वरतो,तबलों श्रतिचिंतन चित्त रतो१२ तबलों व्रत चारित चाहतु हो,तबलों शुभ भाव सुगावतु हो / तबलों सत संग ते नित रहो, तबलों मम संजभचित गहों। जबलों नहिं नाशकरो अरिको, शिवनारि वरों समताधरिको / यह यो तबलों हमको जिन नो,हम जाचा हैं इतनी सुनजी घत्ता-श्रीवीर जिनेशा, नमतसुरेशा, नागनरेशा भगति भरा। ___ 'वृन्दावन' ध्यावै विघन नशाने, वांछि। पार्वे शर्मवा 15 ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय महाघ निर्मपामीति स्वाहा / दोहा-श्रीसन्मतिके जुगल पद, जो पूर्जे धरि प्रीत ___ "वृन्दावन" सो चतुर नर, लहै मुक्ति नवनीत / / इत्याशीर्वादः / / सुनिये जिनराज त्रिलोक धनी, तुममें जितने गुण हैं तितनी काहे कौन सके मुखसों सबही, तिहिं पूजतहो गही अर्घ यही ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि वोरांतेभ्यो चतुर्विंशतिजिनेभ्यो पूर्णाघ नि' कवित्त ऋषभ देवको आदि अन्त, श्रीवर्धमान जिनवर सुखकार / तिनके चरण कमलको पूज, जो प्राणी गुणमाल उचार / /