________________ नित्य नियम पूजा [ 163 छन्द घत्ता जय त्रिशलानंदन हरिकृतवन्दन जगदानन्दन चंदवरं / भवतापनिकंदन तनकनमंदन रहित सपन्दन नयनधरं // 2 छन्द त्रोटक जय केवलभानु कला सदनं, भवि कोक विकासन कंदवनं / जगजीत महारिपु मोह हरं, रजज्ञान दृगावर चूर करं // 1 गर्भादिक मंगल मंडित हो, दुख दारिदको नित खंडित हो जगमांहि तुम्हीं सत पंडित हो, तुमही भव भावविहंडित हो हरिवंश सरोजनको रवि हो, बलवन्तमहन्त तुम्ही कवि हो लहि केवल धर्म प्रकाश कियो, अवलौं सोई मारग राजतियो पुनि आप तने गुनमांहि सही सुरमग्न रहे जितने सबही / तिनकी वनिता गुन गावत है,लय माननि सों मनभावत हैं पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुव भक्ति विषै पम एम धरी // झन झन झननं झननं सुरलेत तहां तननं तननं // 5 // घननं घननं धन घण्ट बजे, दृम हम मिरदंग सजें। गगनांगन-गर्भगता सुगता ततता ततता अतता वितता // 6 // धगतां धगतां गति बाजत है सुरताल रसाल जु छाजत है। सननं सननं सननं नभमें इकरुप अनेक जु धारि भ्रमैं / 7 // कइ नारि सुवीन बजावत हैं तुमरी जस उज्जवल गावत हैं। करताल विष करताल धरे, सुरताल विशाल जु नाद करें - इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी / तुमही जगजीवनके पितु हो,तुमही बिन कारनौं हितु हो।