________________ 134] नित्य नियम पूजा पुनि गीत नृत्य वाजे बजाय, गुण गाय ध्याय सुरपति सिधायः सो थान अवै जगमें प्रत्यक्ष, नित होत दीपमाला सुलक्ष / हे जिन तुम गुण महिमा अपार, वसु सम्यग्ज्ञानादिक सुसार तुम ज्ञानमांहि तिहुँलोक दर्व, प्रतिबिंबत हैं चन अचर सर्व / लहि आतम अनुभव परम ऋद्धि, भये वीतराग जगमें प्रसिद्ध ह बालयति तम सबन एम, अचरज शिवकांता वरी केम / तुम परम शांति मुद्रा सुधार, किये अष्टकर्म रिपुको प्रहार / / हम करत विनती बार बार, कर जोर स्व मस्तक धार धार / तुम भये भवोदधि पार पार, मोको सुवेग ही तार तार / / अरदास दास ये पूर पूर, वसु कर्म शैल चकचूर चूर / दुख सहन करन अब शक्ति नाहि गहि चरणशरण किजे निवाह चौ०-पांचों बालयति तीर्थेश, तिनकी यह जयमाल विशेष / मनवचकाय त्रियोग संहार जे गावत पावत भवपार / / : ॐ ह्रीं पंच बालयति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पूर्णाघ / दोहा-ब्रह्मचर्य सो नेह धरि, रचियो पूजन ठाठ / पांचो बाल यतीन को, कीजे नित प्रति पाठ / / इत्याशीर्वादः / पंच परमेष्ठीको पूजा। दोहा-मंगल मय मंगल करन, पंच परम पदसार ! अशरण को ये ही शरण, उत्तम लोक मंझार / 1 // चव अरिष्ट को नष्ट कर, अनन्त चतुष्टय पाय / परम इष्ट अरिहन्त पद, वन्दौं शीष नवाय // 2 //