________________ नित्य नियम पूजा....................... 133 . तबही लोकांतिक देव आय, वैराग्य वर्द्धनी थुति कराय // तत्क्षण शिविका लाये सुरन्द आरुढ भये तापर जिनेन्द्र / सो शिविका निज कंधन उठाय,सुरनरखग मिल तपवन ठैराय कचलौंच वस्त्र भूषण उतार, भये जती नगन मुद्रा सुधार / हरि केश लेय रतनन पिटार, सो क्षीर उदधि मांहि पधार जय पारसनाथ अनाथ नाथ, सुर असुर नमत तुम चरण माथ जुग नाग जरत कीनो सुरक्ष, यह बात सकल जगमें प्रत्यक्ष तुम सुर धनु सम लखि जग असार, तपत भये तन ममतवार सठ कमठ कियो उपसर्ग आय, तुम मन सुमेरु नहिं ढगमगाय तुम शुक्लध्यान गहि खंडन हाथ,अरि चार घातियाकर सुधात उपजायो केवल ज्ञान भानु, आयो कुवेर हरि बच प्रमाण की समोसरण रचना विचित्र, तहां खिरत मई वाणी पवित्र मुनि सुरनर खग तिर्यच आय सुनि निज२ भाषा बोध पाय !! जय वर्द्धमान अंतिम जिनेश पायो न अंत तुम गुण गण,श / तुम चार अघाती करमहान लियो, मोक्षस्वयंसुख अचलथान / / तबही सुरपति बल अवधिजान, सब देवन युत बहु हर्षठान / सजि निज बाहन आयो सुतीर, जहं परमौदारिक तुम शरीर निर्वाण महोत्सव कियो भूर, ले मलयागिर चन्दन कपूर / बहु द्रव्य सुगन्धित सरस सार, तामें श्रीजिनवर वपु अपार निज अगनिकुमारिन मुकूटनाय,विहं रतननिशुचि ज्वाला उठाय तिस शिर मांह दीनों लगाय,सो भस्म सबन मस्तक चढाय अति हर्ष थकी रचि दीपमाल, शुभ रतनमई दशदिश उजाल