________________ 116 / नित्य नियम पूजा भाव भक्ति युत होय, सदा जो प्राणी व्यावै / या भव में सुख भोग, स्वर्गकी सम्पति पावै / / या पूजा परभाव मिटे भव भ्रमण निरन्तर / यात निश्चय मान करो, नित भावभक्ति धर / / ___( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् / सम्बत् भूव ग्रह मांहि, सावन सार असेत / पहर रात बाकी रही, पूर्ण करी सुख हेत // श्री तीस चौबीसी पूजा पांच भरत शुभ क्षेत्र, पांच ऐरावते, ___आगत नागत वर्तमान जिन शाश्वते / सो चौबीसी तीस जजों मन लायके, आह्वाननं विधि करू वार त्रय गायके / / ह्रीं पंचमेरुसम्बन्धि-पंचभरत पंचऐरावत क्षेत्रस्थ भूतानागत वर्तमान-सम्बन्धिसप्तशतविंशतितीर्थकराः अत्र अवतर२ संवौषट् इति आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / नीर दधि क्षीर सम लायो, कनकके भृग भरवायो / जरा मृतु रोग सन्तायो, अवै तुम चरण ढिंग आयो / द्वीप ढाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता दश विष छाजे। सात शत बीस जिनराजै, पूजते पाप सब भाजै / / 1 / / ॐ ह्रीं पंचभरत-पंचऐरावत--क्षेत्रस्थ--भूतानागत-वर्तमानकाल सम्बन्धि तीस चौबीसीके सातसोवीस तीर्थकरेभ्यो जलं नि /