________________ निस्व नियम पूजा....................[११५.. [112 ये काहे को नहिं डर धराय, इनसे भयभीत भयो अपाय / यह जन्म२ की बात जान मैं कह न सकत हूँ देवमान / / जब तुम अनन्त परजाय जान, दरशायो संसति पथ विधान उपकारी तुम बिन और नाहि दीखत मोकों इस जगत मांहि तुम सब लायक ज्ञायक जिनेन्द्र, रत्न त्रय सम्पत्ति द्यो अमंद यह अरज करू मैं श्रीजिनेश, भवर सेवा तुम पद हमेश // भवभवमें श्रावक कुल महान, भवभवमें प्रकटित तत्वज्ञान / भवभवमें व्रत हो अनागार, तिस पालन तें हों भवाब्धिपार // ये योग सदा मुझको लहान, है दिनबन्धु करूणा निधान / "दौलत आसेरी" मित्र दौय, तुम शरण गही हरषित सुहोय पत्ता-जो पूजे ध्यावे भक्ति बढावे, ऋषि मंडल शुभ यंत्रतनी। ___ या भव सुखपावे सुजस लहावे, परभव स्वर्ग सुलक्ष धनी ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय रोगशोक सर्व-संकट-हराय - सर्वशांतिपुष्टिकराय श्रीवृषभादि चौबीस तीर्थंकर अष्ट वर्ग अरहंतादि पंचपद, दर्शन ज्ञान चारित्र सहित चतुनिकाय देव चव प्रकार अवधिधारक श्रमण अष्ट ऋद्धि संयुक्त बीस चार सुरि, तीन हीं अहंदबिम्ब दशदिग्पाल यंत्र सम्बन्धि परमदेवाय जयमाला पूर्णाऱ्या निर्वपामोति स्वाहा / ऋषि मंडल शुभ यंत्र को जो पूजे मन लाय / ऋद्धि सिद्धि ता घर बसे, विधन सघन मिट जाय / / विधन सघन मिट जाय, सदा सुख सो नर पावै / ऋषि मंडल शुभ यंत्र तनी, जो पूज रचावे / /