________________ नित्य नियम पूजा सुरभिजुत चन्दन लायो, संग करपर घसवायो / “धार तुम चरण ढरवायो, सु भवआताप नशवायो द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो चदनम् नि० / चन्द्रसम तन्दुल, सारं किरण मुक्ता जु उनहारं / पुज तुम चरनडिंग धारं, अक्षय पद काजके कारं ।द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अक्षतान् नि / पुष्प-शुभ गन्धजुत सोहे सुगन्धित तास तन मोहे / जजत तम मदन छय होवे, मुक्तिपुर पलकमें जोवे द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो पुष्प नि / -सरस व्यज्जन लिया ताजा, तुरत बनवाइया खाजा / चरन तुम जजो महाराजा, क्षुधा दुख पलकमें भाजा द्वीप० ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो नैवेद्य नि०।। दीप तम नाशकारी है, सरस शुभ ज्योतिधारी हैं / होय दश दिश उजारी है, धूम्र मिस पाप जारी हैं।द्वीप०। ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो दोप नि० / सरस शुभ धूप दश अगी, जलाऊं अग्निके संगी। करम की सैन चतुरंगी, चरण तम पूजते भंगी ।।द्वीप०॥ ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो धूप नि० /