________________ 110 ] नित्य नियम पूजा सुन्दरी छन्द 'शुभग सम्यग दर्शन ज्ञान जू, कह चरित्र सुधारक मान जू। अर्थ सन्दर द्रव्य सु आठ ले, चरण पूजहूँ साज स ठाठ ले / ह्रों सर्वोपद्रवविनाशनसमोभ्यो सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रेभ्योऽy हरिगीता छन्द भवनवासी देव व्यंतर ज्योतिषी कल्पेन्द्र जू, जिनगृह जिनेश्वर देव राजै रत्न के प्रतिबिंब जू / तोरण ध्वजा घण्टा बिराजै चंवर ढरत नवीन जू, वर अर्घ ले तिन चरण पूजौं हर्ष में अति लोन जू / "ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय भवनेन्द्रव्यांतरेन्द्र ज्योतिषेन्द्र कल्पेन्द्र चतुःप्रकारदेवगृहेभ्यः श्रोजिनचेत्यालयसंयुक्तेभ्यो अh० दोहा-अवधेि चारप्रकार मुनि, धारत जे ऋषिराय / अर्घ लेय तिन चरग जजि, विधन सब मिट जाय / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थेभ्यो चतुःप्रकार अवधिधारक - मुनिभ्योऽर्णी . भुजंगप्रयात छन्द कही आठऋद्धि धरे जे मुनीशं महाकार्यकारी बखानो गनीशं जल गंध आदे दे जजों वर्नतेरे,लही सुक्ख सबेरे हरो दुख केरे ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्यो अष्टऋद्धिसहित मुनिभ्योअर्घ्य श्री देवी प्रथम बखानी, इन आदिक चौबोसों मानी / तत्पर जिन भक्ति विष हैं, पूजत सब रोग नशै हैं / / ह्रों सर्वोपद्रवविनाशनसमषैभ्या श्रीआदिचतुर्विशदेवोम्योऽध्यंग