________________ नित्य नियम पूजा [109 मोक्ष फलके पायवे की आश धरि करि आइये / बहां सभग ऋषि० // तिस मनो० / फलं // जल फलादिक द्रव्य लेकर अर्घ सुन्दर कर लिया। संसार रोग निवार भगवत् वारि तुम पद में दिया / जहां सुभग ऋषि० / तिस मनो० // अध्यं / / अर्घावली। अडिल्ल छन्द / / वृषभ जिनेश्वर आदि अन्त महावीरजी। ये चउवीस जिनराज हनों भवपीरजी // ऋषि मण्डल बिच ही विर्षे राजे सदा / पूजू अयं वनाय होय नहिं दुख कदा / * ही सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थाय वृषभादिचतुर्विंशतितीर्थङ्कर परमदेवाय अध्यं निर्व० स्वाहा / आदि कवर्ग सु अन्तजानि शाषासहा, / ये वसुवर्ग महान यन्त्र में शुभ कहा / / जल शुभ गन्धादिक वर द्रव्य मंगायके / __पूजहूँ दोउ कमजोर शीश जिन नायके / / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशनसमर्थाय कवर्गादिअष्टवर्ग सहिताय हम्ल्व्यू परम यंत्राय अर्घ निर्व० स्वाहा / कामिनी मोहनी छन्द परम उत्कृष्ट परमेष्ठी पद पांच को, नमत शत इन्द्र खग वृन्द पद सांचको / तिमि अघनाश करणार्थ तुम अर्क हो, अर्घ लेय पूज्य पद देत बुद्धि तर्क हो / ही सर्बोपद्रविनाशनसमर्थाय पंचपरमेष्ठिपरमदेवाय अध्य