________________ 108] नित्य नियम पूजा जहां सुभग ऋषि मण्डल बिराजै पूजि मन वच तन सदा / तिस मनोवांछित मिलत सबसख स्वघ्नमें दुख नहिं कदा / ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय यंत्रसम्बन्धिपरमदेवाय जलं। मलय चंदन लाय सुन्दर गंध सों अलि झंकरें / सो लेहु भविजन कुम्भ भरिके तप्त दाह सब हरें // जहां सुभग ऋषि० ॥तिम मनो० / चंदनं / / इन्दू किरण पमान सुन्दर ज्योति मुक्ता की हरैं। हाटक रकेबी धारि भविजन अखय पद प्राप्ती करे / / जहां सुभग ऋषि० / / तिस मनो० // अक्षतं / पाटल गुलाब जुही चमेली मालतो बेला घने / जिस मुरमिते कल हंस नाचत फूल गुथि माला बने / जहां सुभग ऋषि० 1. तिस मनो० / / पुष्पं // अर्द्ध चन्द्र समान फेनी मोदकादिक ले घने / घृतपत्र मिश्रितरस स पूरे लख क्षुधा डायनो हने / / जहां सुभग ऋषि / तिस मनो० / नेवेद्यं / / मणि दीप ज्योति जगाय सुन्दर वा कपूर अनूपकं / / हाटक सुथाली माहि धरिके वारि जिनपद भूपकं / / जहां सुभग ऋषि० // तिस मनो० / दीपं // चंदन सु कृष्णागरु कपूर मंगाय अग्नि जराइये / सो 'धूप धूम्र' आकाश लागी मनहुँ कर्म उडाइये / / जहां सुभग ऋषि० // तिस मनो // धूपं // दाडिम सु श्रीफल आम्र कमरख और केला लाइये /