________________ नित्य नियम पूजा [107.. स्व० त्यागी दौलतराम वर्णी कृत श्री ऋषि-मण्डल पूजा स्थापना / दोहा। चौबीस जिनपद प्रथम नमि, दुतिय सुगणधर पाय। तृतीय पंच परमेष्ठि को, चौथे शारद माय || मन वच तन ये चरन युग, करहूँ सदा परनाम / ऋषि मण्डल पूजा स्चो, बुद्धि बल द्यो अभिराम // अडिल्ल छंद-चौवीस जिन वसु वर्गपंच गुरु जे कहे / रत्नत्रय चव देव चार अवधि लहे / / अष्ट ऋद्धि चव दोय सर ही तीन जू / अरहंत दश दिग्पाल यंत्र मे लीन जू / / दोहा-यह सब ऋषि मण्डल विषे, देवी देव अपार / तिष्ठ तिष्ठ रक्षा करो, पूजू वसु विधि सार // ही वृषभादि चौबीसतीर्थकर, अष्टवर्ग अहंतादि पंचपददर्शन-ज्ञान-चारित्रसहितचनिकायदेव, चार प्रकार अवधि, धारक श्रमण, अष्ट ऋद्धिसंयुक्त चतुर्विति सूरि, तीन ह्रीं, अहंत विबदस दिग्पाल यंत्रसम्बन्धिपरमदेव अत्र अवतर 2. संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनम् / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / अथाष्टक जल क्षीर उदधि समान निर्मल तथा मुनि-चित सारसों।। भरङ्ग मणिमय नीर सुन्दर तृषा तुरत निवारसों /