________________ 106 ] नित्य नियम पूजा शतपंच धनुष उन्नत लसाय, पदमासन जुतवर ध्यानलाय / शिरतीन छत्रशोभितविशाल, त्रयपादपीठ मणि जडितलाल / / भामंडलकी छवी कौन गाय, फुनिचंवरढरत चोसठि लखाय: जय दुन्दुभिरव अद्भुत सुनाय, जयपुष्पवृष्टि गंधोदकाय // जय तहअशोक शोभा भलेय मंगल विभूति राजत अमेय / घटतूप छजे मणिमाल पाय, घटधूम्रधूम दिग सर्व छाय / / जयकेतुपंक्ति सोहैं महान, गंधर्व देव गन करत गान / सुर जनमलेतलखि अवधिपाय, तिहथान प्रथम पूजन कराय / / जिनगेहतनो वरनन अपार, हम तुच्छबुद्धि किम लहतपार / जयदेव जिनेसूर जगत भूप, नमि नेम मंगे निज देहरूप / / ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बध्यष्टकोटि षट् पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिम श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्या निर्वपामीति स्वाहा / दोहा-तीनलोकमें सासते, श्रीजिन भवन विचार / मनवचतन करि शुद्धता पुजों अरघ उतार / / तिहुँ जगभीतर श्रीजिनमंदिर, बने अकीर्तम अति सुखदाय / नर सुर खगकरि नंदनीक जे तीनको भविजन पाठ कराय।। धनधान्यादिक सपति तिनके, पुत्र पोत्र सुख होत मलाय। चक्रीसुर खग इन्द्र होय के, करम नाश शिवपूर सुख थाय / / ( इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि क्षिपेत् )