________________ "नित्य नियम पूजा [105 दश चार ऊंच राजू गिनाय, षटद्रव्य लये चतुकोण पाय / तसु वातवलय लपटाय तीन, इहनिराधार लखियो प्रवीन / त्रसनाडी तामधि जान खास,चतुकोन एक राजू जु व्यास / / राजू उतंग चौदह प्रमान लखि स्वयंसिद्ध रचना महान / तामध्य जीव त्रस आदि देव, निज थान पाय तिष्ठे भलेय / / लखि अधोभागमें श्वभ्रथान गिन सात कहे आगम प्रमान / षटथानमाहिं नारकिवसेय, इक श्वभ्रभाग फिर तीनभेय / / तसु अधोभाग नारकि रहाय, पुनिऊध्व भाग द्वय थानयाय / वस रहें भवन व्यंतरजु देव पूर हर्म्य छजै रचना स्वमेव // विहथान गेह जिनराजभाख, गिन सातकोटि बहत्तर जुलाख / जे भवननमों मनवचन काय, गतिश्वभ्रहरन हारे लखाय // पुनि मध्यलोक गोलाअकार, लखिदीप उदधिरचना विचार / गिन असंख्यात भाखे जुसंत, लखि संभुरमन सबके जु अंत / / इक राजुव्यासमें सर्व जान, मधिलोकतनो इह कथन मान / सबमध्य द्वीप जम्बू गिनेय त्रयदशम रुचिकवर नाम लेय / इन तेरहमें जिनधाम जान, शतचार अठावन हैं प्रमान ! खग देव असुर नर आयआय, पद पूजजाय शिर नायनाय / / जय ऊर्ध्वलोक सुर कल्पवास, तिहथानछजे जिनभवनखास / जय लाखचुरासी पर लखेय, जयसहस सत्याणव और ठेय / / जय बीसतीन फूनि जोडदेय, जिनभवन अकीर्तम जानलेय / अतिभवन एकरचना कहाय, जिनबिंब एकशत आठ पाय / /