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________________ 90] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** - पश्चात् वे प्रसिद्ध दानी राजा श्रेयांस भगवान ऋषभदेवके मुखसे धर्मोपदेश सुनकर जिन दीक्षा लेकर तप करने लगे और अपने शुक्ल ध्यानके प्रभावसे केवलज्ञानको प्राप्त होकर मोक्षपद प्राप्त किया। इस प्रकार सुमति नामकी दरिद्र सेठानीने जिनगुणसम्पत्ति व्रत सम्यग्दर्शन सहित पालन कर अनुक्रमसे मोक्षपद प्राप्त किया तो और भव्य जीव यदि इस व्रतको पालें तो क्यों नहीं उत्तम फल पावेंगे? अवश्य ही पावेंगे। जिनगुण सम्पत्ति व्रत करो, सुमति वणिक नर नार। नर सुरके सुख भोगकर, फेर हुई भव पार॥ m (184 श्री मेघमाला व्रत कथा) महावीर पद प्रणमि कर, गौतम गुरु सिर नाय। कथा मेघमाला तनी, कहूँ सबहि सुखदाय॥ वत्सदेश कौशाम्बीपुरीमें जब राजा भूपाल राज्य करते थे, तब वहां पर एक वत्सराज नामका श्रेष्ठि (सेठ) और उसकी सेठानी पद्मश्री नामकी रहती थी। सो पूर्वकृत अशुभ कर्मके उदयसे उस सेठके घरमें दरिद्रताका वास रहा करता था इस पर भी इसके सोलह (16) पुत्र और बारह (12) कन्याएं थीं। गरीबीकी अवस्थामें इतने बालकोंका लालन-पालन करना और गृहस्थीका खर्च चलाना कैसा कठिन हो जाता है, इसका अनुभव उन्हींको होता है जिन्हें कभी ऐसा प्रसंग आया हो या जिन्होंने अपने आसपास रहनेवाले दीन दुःखियोंकी ओर कभी अपनी दृष्टि डाली हो। पर स्नेह करने वाले मातापिता ही ऐसे समयमें अपने प्यारे
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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