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________________ 76] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** अर्थात् चमर, छत्र, घण्टा, झारी, ध्वजा आदि दश दश उपकरण जिन मंदिरोंमें भेंट देवें और दश प्रकारके श्रीफल आदि फल दश धरके श्रावकोंको बांटे। यदि उद्यापनकी शक्ति न होवे, तो दूना व्रत करे। उत्तम व्रत उपवास करनेसे, मध्यम काजी आहार और जघन्य एकासन करनेसे होता है। इस प्रकार राजा प्रजा सबने व्रतकी विधि सुनकर अनुमोदना की और स्वस्थानको गये। दुर्गन्धा कन्याने मन, वचन, कायसे सम्यक्तपूर्वक व्रतको पालन किया। एक समय दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवानके कल्याणकके समय : देव तथा इन्द्रोंका आगमन देखकर उस दुर्गन्धा कन्याने निदान किया कि मेरा जन्म स्वर्गमें होवे, सो निदानके प्रभावसे यह राजकन्या स्वर्गमें अप्सरा हुई और उसका पिता राजा मरकर दसवें स्वर्गमें देव हुआ। ____ वह दुर्गन्धा कन्या अप्सराके भवसे आकर मगध देशके पृथ्वीतिलक नगरमें राजा महिपालकी रानी मदनसुन्दरीके मदनावती नामकी कन्या हुई, सो अत्यन्त रूपवान और सुगंधित शरीर हुई। और कौशाम्बी नगरीके राजा अरिदमनके पुत्र पुरुषोत्तमके साथ इस मदनावतीका ब्याह हुआ। इस प्रकार वे दम्पति सुखपूर्वक कालक्षेप करने लगे। एक समय वनमें सुगुप्ताचार्य नामके आचार्य संघ सहित आये सो वह राजकुमार पुरुषोत्तम अपनी स्त्री सहित वन्दनाको गया तथा और भी नगरके लोग वन्दनाको गये सो स्तुति नमस्कार आदि करनेके अनन्तर श्री गुरुके मुखसे जीवादि तत्त्वोंका उपदेश सुना! पश्चात् पुरुषोत्तमने कहा
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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