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________________ श्री रोहिणी व्रत कथा [51 ******************************** माता सहित जिनदीक्षा लेगा सो समाधिमरण करके बारहवें स्वर्गमें महर्दिक देव होगा, और फिर मनुष्य भव लेकर तपके योगसे केवलज्ञानको प्राप्त हो मोक्षपद प्राप्त करेगा। इसकी माता विजयवल्लभा प्रथम स्वर्गमें देवी होगी। चन्द्रकेतुका जीव भी अवसर पाकर सिद्धपदको प्राप्त करेगा। इस प्रकार राजा व्रतकी विधि और उसका फल सुनकर घर आया और उसकी कन्याने यथाविधि व्रत पालन करके श्री गुरुके कथनानुसार उत्तमोत्तम फल प्राप्त किये। इस प्रकार और भी जो स्त्री पुरुष श्रद्धा सहित इस व्रतको पालन करेंगे वे भी इसी प्रकार फल पावेंगे। श्रावण द्वादशी व्रत कियो, शीलवती चित्त धार। किये अष्ट विधि नष्ट सब, लह्यो सिद्धपद सार॥ (9 श्री रोहिणी व्रत कथा) वन्दूं श्री अर्हन्त पद, मन वच शीश नमाय। कहूँ रोहिणी व्रत कथा, दुःख दारिद्र नश जाय॥ अंग देशमें चम्पापुरी नाम नगरीका स्वामी माधवा नाम राजा था। उसकी परम सुन्दरी लक्ष्मीमती नामकी रानी थी। उसके सात गुणवान पुत्र और एक रोहिणी नाम की कन्या थी। एक समय राजाने निमित्तज्ञानीसे पूछा कि मेरी पुत्रीका वर कौन होगा? तब निमित्तज्ञानी विचार कर कहा कि हस्तिनापुरका राजा वातशोक और उसकी रानी विद्युतश्रवाका भुत्र अशोक तेरी पुत्रीके साथ पाणिग्रहण करेगा।
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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