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________________ श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** 16 चासग्रह (२४श्री दशलक्षण व्रत कथा) 1 2 3 4 5 6 7 उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, जान। 8 9 10 त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य, मिल ये दशलक्षण धर्म वखान॥ ये स्वाभाविक आतमके गुण, जे नर धरै सुधी गुणवान। तिन पद वन्द्य कथा दशलक्षण, व्रतकी कहूँ सूनो मन आन॥ घातकी खण्ड द्वीपके पूर्वविदेह क्षेत्रमें विशाल नामका एक नगर है। वहांका प्रियंकरा नामक राजा अत्यंत नितिनिपुण और प्रजावत्सल था। रानीका नाम प्रियंकर था, और इसके गर्भसे उत्पन्न हुई कन्याका नाम मृगांकलेखा था। इसी राजाके मंत्रीका नाम मतिशेखर था। इस मंत्रीके उसकी शशिप्रभा स्त्रीके गर्भसे कमलसेना नामकी कन्या थी। ___ इसी नगरके गुणशेखर नामक एक सेठके यहां उसकी शीलप्रभा नामकी सेठानीसे एक कन्या मदनवेगा नामकी हुयी थी। और लक्षभट नामक ब्राह्मणके घर चन्द्रभागा भार्यासे रोहिणी नामकी कन्या हुई थी। - ये चारों (मृगांकलेखा, कमलसेना, मदनवेगा और रोहिणी) कन्याएं अत्यंत रूपवान, गुणवान तथा बुद्धिमान थी। दे सदैव धर्माचरणमें सावधान रहती थी। एक समय वसंतऋतुमें ये चारों कन्याएं अपने अपने माता पिताकी आज्ञा लेकर वनक्रीडाके लिये निकली, सो भ्रमण करती करती कुछ दूर निकल गयी। जबकि ये वनकी स्वाभाविक शोभाको देखकर आल्हादित हो रही थी कि उसी समय उनकी दृष्टि उस वनमें विराजमान श्री महामुनिराज
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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