________________ श्री पुष्पांजलि व्रत कथा [129 ******************************** यह सुनकर देवोने उसे कैलासपर पहुंचा दिया। प्रभावती वहां भादो सुदी पांचमके दिन पहुंची थी, उस दिन पुष्पांजलि व्रत था, इसलिये स्वर्ग तथा पातालवासी देव भी यहां पूजन वन्दनादिके लिये आये थे। सो पद्मावतीदेवीने प्रभावतीका परिचय पाकर कहा-बेटी! तू पुष्पांजलि व्रत कर इससे तेरा सब दुःख दूर होगा। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है कि भादों सुदी 5 से 9 तक पांच दिन नित्यप्रति पंचमेरुकी स्थापना करके चौबीस तीर्थंकरोंकी अष्ट द्रव्योंसे पूजा अभिषेक करे पांच अष्टक तथा पांच जयमाला पढे और 'ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धी अस्सी जिनालयेभ्यो नमः' इस मंत्रका 108 वार जाप करें, पांचमका उपवास करे, और शेष दिनोंमें रस त्याग कर ऊनोदर भोजन करे। हो सके तो 5 उपवास करे, रात्रिको भजन जागरण करे, विषय कषायोंको घटावे, ब्रह्मचर्य रखे और घरका आरंभ त्यागे। इस प्रकार पांच वर्ष तक व्रत करके फिर उद्यापन करे, सो पांच प्रकारके उपकरण पांच पांच जिनालयोंमें भेंट देवे, पांच शास्त्र पधरावे, पांच श्रावकोंको भोजन करावे, चारों प्रकारके दान देवे, इत्यादि। यदि उद्यापन करनेकी शक्ति न होवे तो दूना व्रत करे। इस प्रकार प्रभावतीने व्रतकी विधि सुनकर सहर्ष स्वीकार किया, और उसे यथाविधि 5 वर्ष तक पालन किया तथा उद्यापन भी किया इससे उसे बहुत शांति हुई। पद्मावती देवीने उसे विमानमें बैठाकर उसके नगर मृणालपुरमें पहुंचा दिया। वहां पहुँचकर प्रभावतीने स्वयंप्रभु गुरुके पास दीक्षा ली, और तप करने लगी, सो तपके प्रभावसे उनकी बहुत प्रशंसा फैली। यह प्रशंसा उस पितासे सहन नहीं हुई, और उसने उसे दुःख देनेकी विद्याएं भेजी। सो विद्याएं बहुत उपसर्ग करने लगी,