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________________ [93 श्री मेघमाला व्रत कथा ******************************** अब तुम सत्यार्थ देव अर्हत, गुरु निग्रंथ और दयामयी धर्ममें श्रद्धान करो और श्रद्धापूर्वक मेघमाला व्रतका पालन करो तो सब प्रकार इस लोक और परलोक संबंधी सुखोंको * प्राप्त होवेंगे। यह व्रत भादों सुदी प्रतिपदासे लेकर आश्विन सुदी प्रतिपदा तक प्रति वर्ष एक एक मास करके पांच वर्ष तक किया जाता है अर्थात् भादों सुदी पडिमासे आसोज सुदी पडिमा तक (एक मास) श्री जिनालयके आंगणमें (चौक में) सिंहासनादि स्थापन करे और उस पर श्री जिनबिंब स्थापन. करके महाभिषेक और पूजन नित्य प्रति करे, श्वेत वस्त्र पहिने, श्वेत ही चंदोवा बंधावे मेघ धाराके समान 1008 कलशोंसे महाभिषेक करके पश्चात् पूजा करे। पांच परमेष्ठिका 108 बार जाप करे पश्चात् संगीतपूर्वक जागरण भजन इत्यादि करे। भूमिशयन व ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे। यथाशक्ति चारो प्रकार दान देवे, हिंसादि पांच पापोंका त्याग करे तथा एक मास पर्यन्त ब्रह्मचर्यपूर्वक एक भुक्त उपवास, वेला तेला आदि शक्ति प्रमाण करे। निरन्तर षट्रसी व्रत पाले अर्थात् नित्य एक रस छोडकर भोजन करे। इस प्रकार जब पांच वर्ष पूर्ण हो जावें तब शक्ति प्रमाण भाव सहित उद्यापन करे अर्थात् पांच जिनबिंबोंकी प्रतिष्ठा करावे पांच महान ग्रंथ लिखावे, पांच प्रकार पकवान बनाकर श्रावकोंके पांच घर देवे। पांच पांच घण्टा, झालर, चंदोवा, चमर, छत्र, अछार आदि उपकरण देवे। पांच श्रावकों (विद्यार्थियों) को भोजन करावे, सरस्वतीभवन बनावे, पाठशाला चलावे इत्यादि और अनेकों प्रभावना बढाने वाले कार्य करे।
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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