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________________ 74 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सागर स्थित हैं। उर्ध्वलोक जम्बूद्वीप के मध्यभाग में स्थित मेरुपर्वत निनन्यावे हजार ऊंचा एंव तीन मेखलाओं से युक्त है। यह चालीस योजन ऊंची चूलिका से सुशोभित है / मेरुपर्वत की इसी चूलिका से ऊपर उर्ध्वलोक की स्थिति बतलायी गयी है। उर्ध्वलोक में उत्तर एंव दक्षिण दिशा में अलग-अलग 16 कल्पवृक्ष है | मेरुपर्वत की चूलिका के ऊपर नव ग्रैवेयक, नौ अनुदिश एंव इनसे आगे पॉच अनुत्तर विमानों की स्थिति है। उर्ध्वलोक की अन्तिम सीमा पर ईषत्प्राग्भार भूमि है। ज्योर्तिलोक पृथ्वीतल से सात सौ नब्वे योजन ऊपर ज्योर्तिलोक है जिसका विस्तार एक सौ दस योजन है। यह सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त है जिसकी मोटाई एक सौ दस योजन बतलायी गयी है। ज्योर्तिलोक का प्रारम्भ तारा पटल से होता है। तारापटल के ऊपर सूर्यपटल एंव सूर्यपटल से अस्सी योजन ऊपर चन्द्रपटल और इसके आगे बुध, शुक, गुरु, मंगल, शनेश्वर ग्रहों के पटल स्थित हैं। . पुराणों में नगर ग्राम आदि का विभाजन स्पष्टतः प्राप्त होता है। जो नगर नदी एंव पर्वत से घिरा रहता है उसे खेत कहा गया है। केवल पर्वत से घिरे हुए को खर्बट और पाँच सौ गॉवों से घिरे हुए स्थान को मटम्ब संज्ञा दी गयी है। इसी तरह समुद्र के किनारे स्थित एंव नावों द्वारा आवागमन होने वाले स्थान को द्रोण मुख एवं शूद्रों एंव किसानों के निवास स्थान, बाग बगीचों से युक्त एंव बाड़ से घिरे हुए घर जहाँ हो उसे ग्राम कहा गया है। राजनैतिक राज्य की उत्पत्ति जैन पुराणों में वर्णित राज्य विषयक सिद्धान्त हिन्दू एंव बौद्ध परम्परा से मिलते हैं। जैन परम्परा में राज्य का प्रारम्भ ऋषभ द्वारा “अव्यवस्था से बचने के लिए एंव प्रजा के रक्षण के लिए चार मांडलिक राजाओं की नियुक्ति से होता है | राज्य के अंग राज्यशास्त्रीय ग्रन्थों में वर्णित राज्य के अंग एंव उपांगों के सम्यक् वर्णन की भांति जैन पुराणों में एक साथ एंव कम से अंग एंव उपांगों का वर्णन नहीं हुआ है। पौराणिक कथानकों में वर्णित राजाओं के पौराणिक आख्यानपरक कथानकों में राजा
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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