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________________ पुराण 73 . पर्वत, क्षेत्र एंव नदियाँ है। जिस प्रकार जम्बूद्वीप को लवण समुद्र घेरे हैं उसी प्रकार पुष्करद्वीप को पुष्करवर समुद्र घेरे हुए है | (4), (5). (6). (7) - पुष्करद्वीप के आगे वारुणीवर द्वीप, क्षीरवर द्वीप, धृतवरद्वीप, इक्षुवर द्वीप आदि की स्थिति बतलायी गयी है। जिन्हें इन्हीं के नामानुरुप सागर घेरे नन्दीश्वर द्वीप नन्दीश्वर सागर नन्दीश्वर द्वीप को चारों और से घेरे हुए स्थित है। नन्दीश्वर द्वीप में नन्दोत्तरा आदि वापिकाओं की स्थिति बतलायी गयी है जो स्वच्छ जल से युक्त रहती। इनकी गहराई एक लाख योजन एंव लम्बाई चौड़ाई जम्बूद्वीप के बराबर एक लाख योजन है | तीर्थकर ऋषभ के अभिषेक के समय इन्हीं वापिकाओं से जल लाया गया था | नन्दीश्वर द्वीप का विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन बतलाया गया है / इस द्वीप की अभ्यन्तर परिधि एक हजार छत्तीस करोड़ बारह लाख दो हजार सात सौ योजन एंव बाह्य परिधि दो हजार बहत्तर करोड़, तेंतीस लाख चौवन हजार एक सौ नब्वे योजन है। ढोल के आकार एंव चौरासी हजार योजन ऊँचे एंव इतने ही चौड़े तथा एक हजार योजन गहरे विस्तार वाला अज्जन पर्वत नंदीश्वर द्वीप को घेरे हुए है | नन्दीश्वर द्वीप के अन्तर्गत बावन चैत्यालयों की स्थिति बतलायी गयी है। विभिन्न उत्सवों पर सौधर्मेन्द्र द्वारा पूजा होने के उल्लेख मिलते है। अरुण द्वीप अरुण द्वीप अरुण सागर से घिरा हुआ है। समुद्र से लेकर ब्रह्मलोक पर्यन्त अन्य कार व्याप्त रहता है जिसमें अल्प श्रृद्धिधारी देव दिशाविमूढ़ होकर भटकते रहते हैं। कुण्डलवर द्वीप कुंडलवर द्वीप के मध्य में चूड़ी के आकार के कुण्डलगिरि पर्वत एंव चारों और कुण्डलवर सागर की स्थिलि बतलायी गयी है। कुण्डलगिरि के चारों और चार जिनालय है जो अज्जनगिरि के जिनालयों के समान हैं | रुचकवर द्वीप इसके मध्य में रुचकवर पर्वत है। चारों दिशाओं में चार-चार कूट है। देवों के स्थान पर देवियाँ सुशोभित हैं। स्वयम्भूरमण द्वीप इसके मध्य में चूड़ी के आकार वाला स्वयंप्रभ पर्वत है एंव चारों और स्वयंप्रभ
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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