________________ vi कालनिर्देश इतिहास निर्माण एवं समाज की परिवर्तनशील प्रकृति को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। छठी शताब्दी ई. वी का उत्तरयुगीन साहित्य हिन्दू आख्यानों एवं उपाख्यानों से प्रभावित हुआ। फलतः अनेक जैन साहित्यिक विधाओं-चरितकाव्य, पुराण, कथा साहित्य आदि का प्रणयन हुआ जो रचनाकालीन समाज की परंपराओं और मान्यताओं को समाहित किये हुए है। जैन सामाजिक विचारकों नेअपनी साहित्यिक विधाओं को संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कभड़ गुजराती, मराठी एवं तमिल आदि भाषाओं में लिखा है, उनमें तत्कालीन सामाजिक धार्मिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक विवरण प्रस्तुत किये हैं। हिन्दू समाज “वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना को अपने में संजोये हुए है। फिर भी हिन्दू समाज को और अधिक उदान्त बनाने के दृष्टिकोण से हिन्दू तथ्यों का भी जैन विचारकों ने जैनीकरण किया है। हिन्दू आख्यानों पर आधारित कथा साहित्य एवं अभिलेखीय साहित्य में भारतीय समाज एवं संस्कृति में मान्य संघ, गण, गच्छ, आचार्यों की वंशावलि को स्पष्ट किया गया है। जैन ऐतिहासिक तथ्यों भोगभूमि, कर्मभूमि, अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी, भक्तिधारा योग एवं उपासना, तप एवं आचारएवं अन्य धार्मिक सिद्धान्तों, मन्दिर एवं मूर्ति पूजा पद्धति, वर्णाश्रम व्यवस्था, पुरूषार्थ, कर्म सिद्धान्त आदि पर हिन्दू प्रभाव एवं समानता दिखाते हुए जैन तिहासकारों की उदारवादी, धार्मिक सहिष्णुता एवं समन्वयवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट किया गया है। लेखन शैली में इस बात का पूर्ण ध्यान रखा गया है कि पुस्तक में वर्णित सामग्री को पाठक सरलता पूर्व सम्यक् रूप से समझ सकें। मुझे विश्वास है कि जैन समाज और उसके इतिहास को समझने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। भारतीय वाड़मय के महत्वपूर्ण अंग जैन वाड़मय का इतिहास निर्माण की दृष्टि से अध्ययन, . एवं ऐतिहासिक एवं सामाजिक परंपरा के विविध स्वरूपों का इतिहास एवं समाजशास्त्र के नवीन मापदंडों को स्पष्ट करने में यह पुस्तक महत्वपूर्ण एवं दिशा निर्देशित करने में सक्षम सिद्ध होगी। यहाँ मैं उन सभी विद्वानों के प्रति आभार प्रदर्शित करना अपना परम दायित्व समझती हूँ जिनकी रचनाओं एवं दिशा निर्देशन का लाभ इस पुस्तक में उठाया गया है। मैं पुस्तक के प्रकाशक श्री बी. के. तनेजा को विशेष रूप से धन्यवाद ना चाहूँगी जिनके सद्प्रयत्नों एवं सहयोग से यह पुस्तक अति सुंदर ढंग से प्रकाशित हो पायी है। सहृदय पाठकों एवं विद्वतज्जनों से नम्र निवेदन है कि अपने सुझावों द्वारा अनुग्रहित करें। डॉ (श्रीमती) उषा अग्रवाल