________________ आमुख समाजिक विचारक अपने मौलिक चिन्तन, मनन एवं अध्ययन द्वारा तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों एवं गतिविधियों को अपने साहित्य में प्रतिफलित करते हैं। भारतीय इतिहास एवं तत्कालीन समाज एवं संस्कृति के विविध पक्षों का ज्ञान कराने में जैन सामाजिक विचारक अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। "जैन समाज" भारतीय समाज का एक अभिन्न एवं प्राचीन समाज है। जैन धर्म के अंतर्गत चौबीस तीर्थकरों द्वारा दिये गये उपदेशों के आधार पर जैन पुराणों, चरितकाव्यों, कथासाहित्य एवं अभिलेखीय साहित्य की रचना की गई। धार्मिक ग्रन्थ एवं तत्कालीन लिखा गया साहित्य ही इतिहास निर्माण की परंपरा को स्पष्ट करते हैं। "साहित्य समाज का दर्पण" होता है। किसी भी समूह, समुदाय, समाज, समिति संस्था एवं राष्ट्र का हम तब तक संपूर्ण एवं समीचीन अध्ययन नहीं कर सकते, जब तक कि उसके इतिहास का सभ्य रूप से संकलन करके उसका विशद अध्ययन न कर लें। अतः जैन समाज का समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से अध्ययन करने के लिए ऐतिहासिक परंपराओं को इतिहास निर्माण के निमिल खोज निकालने, ऐतिहासिक मान्यताओं का इतिहास निर्माण की दृष्टि में उपयोग करने की दिशा में इनका किना विशाल योगदान हो सकता है, की जानकारी हेतु ऐतिहासिक पद्धति का प्रयोग किया गया है। जैन साहित्य भारतीय वाड़मय का एक अभिन्न अंग है। जैन साहित्य का सूत्रपात महावीर के निर्वाणोपरान्त 160 ई. पू. में हुआ। समय-समय पर जैन इतिहासकारों एवं साहित्यकारों ने युग की परिस्थितियों एवं गतिविधियों को परखते हुए विभिन्न भाषाओं में साहित्य निर्माण किया। अपने धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्तों को स्थायी एवं व्यापक रूप प्रदान करने के साथ ही भारतीय संस्कृति के बदलते हुए जीवन मूल्यों को दृष्टिगत करते हुए नवीन प्रतिमानों के अनुसार साहित्य सृजन किया गया। से स्पष्ट होता है कि जैन इतिहासकारों एवं सामाजिक विचारकों ने संस्कृति के अन्य पक्षों की अपेक्षा धर्म एवं दर्शन के सिद्धान्तों के साथ आचार व्यवहार को विशेष स्थान दिया है वहीं उत्तरयुगीन साहित्य में धर्म एवं दर्शन के सिद्धान्तों, आचार व्यवहारों के साथ ही भारतीय संस्कृति अपने विविध पक्षों - सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक रूपों में प्रतिफलित हुई है। जैन इतिहासकारों एवं सामाजिक विचारकों द्वारा अपने ग्रन्थों में किये गये