________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 2 लेख नं० 264, भाग 2 लेन० 144, 136, जै०शि०सं० भाग 3 लेनं० 410, भाग 4 ले०न० 76, 143, 176 / 7. प्र०सा०अध्याय 1 गाथा 6-7 तै०उ० 1.11.2 स्था०सू० क 266 .' उ०सू० 23/8/27 व्या०प्र०२०.८ मूलाचार 7/115-126, 7/34 / षट्खण्डागम-टीकाः (धवलाटीका प्रथम पुस्तक कारंजा 1636) पृ० 112 / 11. त्रिश०पु०च०पर्व 20-21 12. ऋग्वेद 8/8/24, यजुर्वेद 25/16 . 13. भागवत 2/7/10, मा०पु० 50/36-41 / 14. मूलाचार 533 एंव उत्तराध्ययनसूत्र में केशी गौतम सम्वाद / 15. समवायांगसूत्र 24, कल्पसूत्र 6-7, आवश्यक नियुक्ति 366 / ब०च० 17/37-36 पृ० 267 / 16. जिनरत्नकोश पृ० 28 17. वही पृ० 57 18. वही पृ० 446 16. वही पृ० 445 20. जिनरत्नकोश पृ० 445 21. वही पृ 116 22. चन्दप्पह चरिय 23. जिनरत्न पृ० 116 24. पट्टावली पराग पृ 363 25. जिनरत्नकोश पृ 116, चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य, ___संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान पृ८१, डा० नेमिचन्द्रशास्त्री 26. जिनरत्नकोश पृ० 116 27. जिनरत्नकोश पृ० 366 28. वही पृ० 400 26. वही पृ० 163 जै०स०शो० 7 पृ 251-254. 30. उत्तरपुराण के ६१वें पर्व में धर्मनाथ का चरित्र 52 पद्यों में वर्णित है जिनमें कि दो पूर्वभवों एंव वर्तमान भव का निर्णन है। 31. धर्मशर्माभ्युदय 2/77, 3/26-27,33,34,10/6 11/72, 14/8, 30, .