________________ अभिलेख / 161 माने जाते थे। पूर्व मध्यकाल की प्रशस्तियों में उनके कुल के साथ ब्राह्मण विद्या की भी चर्चा की गयी है। तीनों वर्ण एंव उपजातियाँ इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलती थी। राज्य दरबार में ब्राह्मणों को सम्मान एंव विश्वास प्राप्त था। लेखों से राज्य की और से ब्राह्मणों को भूमि, ग्राम मन्दिर देने एंव उनकी आजीविका हेतु सत्र खोलने की जानकारी होती है / होस्यसल वंशीय राजाओं द्वारा ब्राह्मणों को तालाव देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं | लेखों से ज्ञात होता है कि पूर्वमध्यकाल में ब्राह्मणों में गोत्र, शाखा, प्रवर एंव स्थानीय आधारों को लेकर उपजातियाँ बनने लगी। इसी कारण दानग्राही ब्राह्मणों के साथ उनके विशेष गोत्र एंव शाखा का उल्लेख किया गया है। स्मृतियों की भॉति ही पूर्वकालीन जैन अभिलेखों में उनके षट्कमों (यजन्-याजन्, अध्ययन, अध्यापन, दान एंव प्रतिग्रह) आदि का उल्लेख प्राप्त होता है। दान लेना ब्राह्मण के आवश्यक कर्तव्यों में से था / ब्राह्मणों द्वारा अन्य कर्मो को भी अपनाया गया / भक्ति के प्रचार से पूर्व मध्ययुग में मन्दिरों का निर्माण अEि क होने से ब्राह्मणों द्वारा मूर्तिपूजा को भी अपनाया गया। जैन अभिलेखों में इन्हें पुरोहित नाम से सूचित किया गया है। गंगवंशीय अभिलेखों से पुरोहित वर्ग एंव उसे दान देने की जानकारी होती है | ये मन्दिर की देख रेख करते थे / इसके साथ ही ब्राह्मणों द्वारा शासन में मंत्री एंव सेनापति के कार्य करने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। सेना में मृत्यु हो जाने पर राज्य की ओर से ब्राह्मण के परिवार को “मृत्युक वृत्ति दी जाती थी| लेखों में प्राप्त ब्राह्मण को भूमि एंव ग्राम दान के उल्लेखों से कृषिकर्म करने की जानकारी होती है जिसकी उपज से प्राप्त आय मन्दिर प्रबन्ध | के काम आती होगी। चोल लेखों में ब्राह्मणों को निश्चित समय तक भूमिकर अदेय होने के उल्लेख प्राप्त होते हैं लेकिन उसके पश्चात् भूमिकर न देने पर भूमि जब्त कर लेने की जानकारी होती है। ब्राह्मण जैन एंव शैव दोनों ही धर्मों के अनुकूल जीवनयापन करते थे सम्भवतः वे उदारवादी हृदय के रहे होगें" | क्षत्रिय चातुर्वर्ण्य व्यवस्था में ब्राह्मण के पश्चात् क्षत्रिय को स्थान दिया गया है। सॉतवी शताब्दी से शासन सम्बन्धी लेखों में "क्षत्रिय” का नाम प्राप्त होता है जो राज्य कार्य करने के कारण समाज में अग्रणी माने गये हैं। पूर्वमध्ययुग में क्षत्रियों के लिए 'राजपूत” शब्द का भी प्रयोग मिलता है२० | प्रशस्तियों में वर्णित पदाधिकारियों मे युवराज को राजपुत्र कहा गया है जो क्षत्रिय जाति का वंशज होने को स्पष्ट करता है। राजपूत नरेशों के अभिलेख भी उन्हें क्षत्रियवंशी बतलाते हैं। शासन कार्य के अतिरिक्त ये सैनिक कार्य भी करते थे। चन्देल शासन द्वारा युद्ध में मारे जाने पर