________________ 160 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास किसी अन्य दाता द्वारा दिये गये दान के वर्णन में देय पात्र एंव दान में दी गयी वस्तु, समय आदि का उल्लेख मिलता है इसके साथ ही यदि मुनि या आचार्य आदि है तो उसके संघ, गण, गच्छ, आचार्य परम्परा आदि की जानकारी होती है। लेख में लेखक एंव उत्कीर्ण कराने वाले शासक एंव स्त्री-पुरुषों का उल्लेख होता है। जैन लेखों में प्रायः कालनिर्देश पाया जाता है यह कालनिर्देश शासन करने वाले राजा का अथवा तत्कालीन समय में प्रचलित सम्वत् में होता है। कभी कभी तो शासक का शासन वर्ष, महीना, दिन, तिथि, ऋतु आदि के वर्णन प्राप्त होते हैं जो कमवद्ध, राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मूर्तियों, धर्म स्थानों, मन्दिरों के निर्माण का काल अंकित रहता है जिससे कला एवं धर्म के विकास कम की जानकारी होती है। जैन अभिलेखों का मूल प्रयोजन धार्मिक था। जैन इतिहासकार साहित्य, कला के माध्यम से अपने धर्म को प्रचारित एंव स्थायी रुप देना चाहते थे अतएव वे समय एंव परिस्थिति के अनुकूल ही भाषा को अपना माध्यम बनाते थे। इसी कारण जैन अभिलेख प्राचीन से अर्वाचीन तक प्राकृत, संस्कृत, तेलगू, तमिल कन्नड़ आदि सभी भाषाओं में पाये जाते हैं। जैन अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रारम्भिक जैन अभिलेख द्वितीय शताब्दी तक प्राकृत में ही लिखे गये। प्राकृत भाषा का सबसे प्राचीन अभिलेख अजमेर से 32 मील दूर बारली नामक ग्राम से एक पाषाण स्तम्भ पर प्राप्त हुआ है जिसमें स्व० गौरीशंकर ओझा ने वीर निर्वाण सं० 84 लिखा बताया है। इस लेख की लिपि भी अशोक के लेखों से पूर्व की मानी गयी है। अभिलेखों में वर्णित समाज साहित्यिक साक्ष्यों की भांति अभिलेखीय साक्ष्यों का उद्देश्य वर्णाश्रम धर्म का वर्णन करना नहीं था केवल शासन एंव दान के प्रसंग में दानग्राही एंव दान देने वाली जातियों के उल्लेखों से वर्ण व्यवस्था की जानकारी होती है। अभिलेखों में राजाओं को वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक कहा गया है। लेखों से व्यवसाय, धर्म, गोत्र एंव विवाह आदि के आधार पर उपजातियों एंव व्यावसायिक जातियों की जानकारी होती है जो मन्दिर निर्माण, गॉव एंव भूमिदान आदि की प्रबन्धक होती थी। जैन धर्म के अन्तर्गत मुनि एंव श्रावक के अन्तर्गत स्त्री पुरुषों के संघों को जाति शब्द से वर्णित किया गया है | चारों वर्णो एंव व्यावसायिक जातियों को संघों में प्रवेश करने एंव 6 पार्मिक कृत्यों में समान अधिकार प्राप्त थे। ब्राह्मण विद्धता, आचरण एंव व्यवहार कुशलता के लिए ब्राह्मण चारों वर्गों में श्रेष्ठ