________________ चरितकाव्य 147 व०च० 1/43 च०च० 1/37-46, व०च० 2/6 च०च० 1/47 व०च० 7/53 च०च० सर्ग 7 व०च० 14/24-34 व०च० 3/58-64, जी०च० 10/26 त्रिश०पु०च० 1/4/658-70, 2/4/346-70 त्रिश०पु०च० 1/5/456-70, जी०च० 10/36, 37 य०च०पृ०ख 3/66 च०च० 3/4, द्वि०म० 2/11 य०च०पू०ख 2/31 जी०च० 1/33-35, 36 य०च०पू०ख० 2/32, जी०च० 7/30 त्रिश०पु०च०२/१/१७४-७६ य०च०, उख, 5/127 जी०च० 11/2 च०च० 4/41 छ०चू० 196, बं०चं० 21/10-16 त्रिश०पु०च० 1/2/624-33 त्रिश०पु०च० 1/1/266-73, 1/3/8-10 .. प्र०च०८/२०-२१, ध०श०.१८ वॉ सर्ग त्रिश०पु०च० 1/1/178 प्र०च० 4/61 ने०म० प्रथम सर्ग त्रिश०पु०च० 1/3/17 च०च० 4/16-66 जी०च० 10/11-13 त्रिशपु०च० 2/1/210-26 . त्रिश०पु०च० 2/1/206 बं०च० 20/6, अ०श० १८वॉ सर्ग, त्रिश०पु०च० 1/2/605-11 त्रिश०पु०च० 1/3/11-16, 2/1/166-67 / 2/3/64-66 बं०चं० 11/53-62 32. 36. 37. 38.