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________________ चरितकाव्य 137 पृथकत्व वितर्क विचार, एकत्व वितर्क अतीचार, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती, एंव व्युपरत-किया-निवृत्ति का उल्लेख मिलता है२७६ | यह ध्यान केवल ज्ञान के चरम अवस्था में होता है योगी कमशः आत्मा को कर्ममल से रहित बनाकर अन्ततः मोक्ष पद प्राप्त कर लेता है२०७। इस तरह ध्यान द्वारा पापों के नष्ट होने, बुद्धि शुद्ध एंव चरित्र पालन स्थिर होने की जानकारी होती है२७८ | चरितकाव्यों से ध्यान के आसनों के स्वरुप की जानकारी होती है जिनमें पद्मासन, वीरासन एंव सुखासन प्रमुख हैं। मोक्ष - जैनधर्म के अन्तर्गत चिरस्थायी एंव अनन्तसुख मोक्ष की प्राप्ति कर्मो के क्षय हो जाने पर प्राप्त होती है२८० | इसी कारण भिक्षुओं को सांसारिक प्रवृत्ति से धर्मसाधनरुप विरक्ति की ओर जाने के उपदेश देने की जानकारी होती है। मोक्ष को जैनदर्शन में सॉतवा तत्व माना है२८२ | वैशेषिक आत्मा के ज्ञानादि विशेष गुणों के अभाव को एंव सांख्यवादी ज्ञानादि से रहित केवल चैतन्यस्वरुप की प्राप्ति को मोक्ष मानते हैं | चरितकाव्यों में मोक्ष मार्गी को तत्वों का ज्ञाता एंव सम्यग् दृष्टि युक्त कहा गया है१८४ | जयरत्न त्रयरत्नों को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है२८५ | वर्धमान चरित में त्रयरत्नों के साथ तप को ही मोक्ष प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन माना गया है२८६ | वैदिक परम्परा में भी श्रद्धा, ज्ञान एंव कर्म को त्रयरत्न माना गया है२८७ | रत्नत्रय को चार धातियों कर्मो का नाशक कहा गया है२८८ | शास्त्रोक्त तत्वों के स्वरुप सच्ची श्रद्धा उत्पन्न होने को सम्यकदर्शन कहा गया है२८६ चरितकाव्यों से सम्यकदर्शन के दस प्रकारों एंव उनसे जन्म जन्मान्तरों के पापों के नष्ट होने एंव मोक्ष प्राप्ति की जानकारी होती है६० जीवादि सात तत्वों में जो श्रद्धा भाव उत्पन्न होते हैं उनकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करना सम्यक् ज्ञान है२६१ | चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि ज्ञानहीन किया से कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती है इसी कारण इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वितीय सोपान माना गया है९२ | मति, श्रुति, अवधि, मनपर्ययः एंव केवल ज्ञान के भेद से सम्यक ज्ञान के पॉच प्रकारों एंव ऋषभ द्वारा सम्यक्ज्ञान द्वारा मोक्ष मार्ग को जानने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२३ / कर्मो के संवर एंव निर्जरा के लिए सम्यज्ञान एंव दर्शन के साथ ही सम्यक्चरित्र भी आवश्यक है। चरितकाव्यों से सम्यकत्व आदि के भेद से 5 भेदों२४ एंव सागार एंव अनागार की दृष्टि से दो भेदों की जानकारी होती है२९५ | सम्यकचारित्र
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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