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________________ 136 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास दस -धर्म चरितकाव्यों से रागद्वेष आदि दुर्भावनाओं से दूषित होने वाली मानसिक अवस्थाओं के उपशमन के लिए दस प्रकार के धर्मो - उत्तम, क्षमा मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन्य एंव ब्रह्मचर्य आदि की जानकारी होती है। इन धर्मो के द्वारा मन के कोधादि कषायों को जीवन के लिए विरोधी गुणों को उत्पन्न किया जाता है। धर्म को स्वर्ग सुख, एंव इन्द्रिय सुख एंव समस्त सुखों का मूल२६३ माना गया है। परीषह महाव्रतों, अनुप्रेक्षाओं, समिति, गुप्ति एंव धर्म आदि के नियमों के पालन से ज्ञात होता है कि जैन भिक्षुओं की मुख्य साधना समत्व को प्राप्त करने के लिए होती है। कर्मो के आस्त्रव को रोकने एंव मोक्ष प्राप्ति के लिए उन्हें सभी प्रकार के परीषहों को सहन करना होता है२६४ / क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, डॉस, मच्छर, नग्नता, अरति, स्त्रीपरीषह, निद्रा, शैय्या, आकोश, वध, याचना, अलाभ, रोगविजय, तृणस्पर्शविजय, मलपरीषह, सत्कारपुरस्कार विजय, अज्ञान, प्रज्ञाविजय, अदर्शन आदि 22 परीषहों एंव उन पर विजय प्राप्त करने के उल्लेख वर्धमानचरित्र में प्राप्त होते हैं२६५ | तप कर्मो द्वारा उत्पन्न दोषों के विनाश के लिए तप को महत्वपूर्ण साधन माना गया है२६६ | स्पर्श, रस, गन्ध, रुप एंव शब्द की संगति के त्याग एंव कायकलेश द्वारा शरीर क्षीण करने को तप कहा जाता है२६७ | बाह्य एंव आभ्यन्तर दो प्रकार के तपों के उपदेश करने की जानकारी होती है२६८ | अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसख्यान, रस परित्याग, विविक्त शैय्यासन, एंव कायकलेश ये बाह्य तप है६६ एंव प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, एंव ध्यान ये छः आभ्यन्तर तप है७० / राजाओं द्वारा जिनदीक्षा ग्रहण कर लेने पर बारह प्रकार के कठोर तप निर्विधन शेप में करने की जानकारी होती है। ध्यान ___ मन को ललाट के मध्य में सन्निहित करके, नेत्रों को नासाग्र करके, एकाग्र मन से चिन्तन करना ध्यान कहा जाता है२७२ | आर्त, रौद्र, धर्म एंव शुक्ल के भेद से ध्यान चार प्रकार कहा गया है.७३ / आत एंव रौद्र ध्यान के स्वरुप, प्रकार के वर्णन के साथ इसे त्याज्य बतलाया गया है२७४ | चरितकाव्यों में धर्म ध्यान पर बल एंव इसकी महत्ता का प्रतिपादन किया गया है७५ | शुक्ल ध्यान के चार प्रकारों -
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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