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________________ 108 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास जानकारी होती है। प्रायः स्त्री के विधवा होने एंव संन्तान न होने पर देवर के साथ नियोग कराया जाता था। लेकिन यह सार्वभौमिक नियम नहीं था। __सती प्रथा का पूर्णतः अभाव था / जैन संस्कृति में जैन नारी को आर्यिका बनकर धर्म ध्यान में जीवन व्यतीत करने का निर्देश दिया गया हैं। गणिकाएँ ___ जैन संस्कृति में गणिकाएं समाज का एक आवश्यक अंग थी। तीर्थकर ऋषभ देव के दीक्षा के समय द्वार पर द्वारयोषिताओं को मंगल द्रव्य लिए खड़ा किया गया था। गणिकाओं को रतिशास्त्र के आचार्य के रुप में स्वीकृत किया गया है। चारों वेदों एंव अनेक लिपियों में निष्णात होने के उल्लेख मिलते हैं | गणिकाओं द्वारा श्रावक धर्म स्वीकार करने की भी जानकारी होती है। धूर्तों एंव पाखण्डी व्यक्ति सीधे नागरिकों को ठगने के साथ ही परदेश गये हुए व्यक्तियों की पत्नियों को अपहरण कर लेते थे५ | स्तेंयशास्त्र के प्रवर्तक मूलदेव द्वारा शिष्यों को धूर्त एंव दम्भ की शिक्षा देने की जानकारी होती हैं६६ | वसुदेव हिण्डी में धूर्तसभा एंव धूर्तशाला का उल्लेख हैं | क्षेमेन्द्र ने अपने कलाविलास में धूर्तो के कुछ गुणों का उल्लेख किया है | जैन कथाऐं विश्वास पात्र बनकर ठगने वाले मित्रों का भी उल्लेख करती है | इन कथाओं को लिखने का उद्देश्य जनसाधारण को इनसे सावधान रहने का उपदेश देना था। आर्थिक कथा साहित्य से ज्ञात होता है कि असि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प एंव धातुवाद अर्थोपार्जन के साधन थे। हरिभद्र सूरि ने साम दण्ड एंव भेद को अर्थोपार्जन का साधन कहा है | व्यापारी वर्ग जलपोतों एंव नौकाओं द्वारा विदेशों से व्यापार करते थे। व्यापार में अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करना होता था | चोर डाकू रास्ते में सब सामान लूट लेते थे७३ | अचानक बाढ़ का आ जाना व्यापारियों के लिए बहुत कष्ट पहुँचाती थी। ___ कथासाहित्य में उल्लिखित समुद्र यात्राओं से ज्ञात होता है कि व्यापारिक केन्द्र बड़े नगरों में होते थे। कई द्वीपों से रत्नों की प्राप्ति भी होती थी। व्यापारी अपने साथ में खाने पीने का सामान एंव रोगियों के लिए अपथ्य एंव दवाएं साथ में ले जाते थे। नाव में बैठने से पूर्व समुद्र एंव वायु की पुष्प एंव गन्ध द्रव्य से पूजा करते थे। जलपोतों के समुद्र में डूब जाने के उल्लेख मिलते हैं जिससे व्यापारियों की मत्यु हो जाती थी। कथाओं से जैन वर्ग की आर्थिक सम्पन्नता की जानकारी होती है। मनुष्य
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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