SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथा साहित्य 107 जैन कथाओं से आध्यात्मिक शक्ति द्वारा लौकिक विनाश एंव दुखदायी शक्तियों के समाधान करने का उल्लेख प्राप्त होता है। विभिन्न कथाओं से ज्ञात होता है कि स्त्रियाँ अपने व्रत साधनादि द्वारा अपने पति एंव परिवारीजनों को कष्टों से बचाती थी। शीलवती, सुदर्शन नीली एंव अंजना सती की कथाओं से ज्ञात होता है कि सदाचार को सुरक्षित रखना अपना विशेष कर्तव्य समझती थी। राजा का भी यह कर्तव्य था कि देशाटन परं गये व्यापारियों की स्त्रियों की रक्षा करे | पुरुषों के समान स्त्रियाँ धार्मिक कृत्यों में भाग लेती, एंव दीक्षा ग्रहण करके संघ का नेतृत्व करती थी / ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दना जयन्ती आदि कन्याओं ने आजन्म ब्रहमचर्य पालन किया। जैन कथाओं में उपदेशिकाओं के उल्लेख मिलते है | स्त्रियों द्वारा ग्रन्थ प्रणयन करने एंव विद्धता में उच्च स्थान प्राप्त करने के वृतान्त प्राप्त है। स्त्रियों द्वारा जिन पूजा करने, पुष्प अर्पित करने एंव निर्वाण प्राप्त करने की जानकारी होती है५ | स्त्रियों को भरत चक्रवर्ती के 14 रत्नों में गिना गया है५६ | उच्च स्थिति के साथ ही उनकी पराधीनता का भी उल्लेख प्राप्त होता है | वेश्या वृत्ति जैन कथाओं में दिखाया गया है कि किस प्रकार से समाज के अन्तर्गत निन्दनीय समझी जाने वाली वेश्याओं के समाजीकरण का प्रयास किया गया। वेश्याएँ नृत्य, संगीत एंव वाद्य में निष्णात् मानी गयी हैं। प्राचीन काल में राजकुमारी को शिष्टाचार की शिक्षा प्राप्त करने हेतु वेश्याओं के पास भेजा जाता था। उनके पास शिक्षा हेतु भेजने का उद्देश्य उनकी सामाजिक स्थिति की अभिवृद्धि करना अभिप्रेत रहा है। समाज में उन वेश्याओं का सम्मान किया जाता था। जो राज्य द्वारा पुरस्कृत होती एंव बुद्धिमान व्यक्ति जिसकी प्रशंसा करते थे। विधवा विवाह जैन समाज में विधवा विवाह निषेध था। वह अपना जीवन अध्यात्म की और लगाकर समाज सेवा करते हुए जीवन यापन करती। पर्दा, नियोग एंव सती प्रथा कथाओं में प्राप्त उल्लेखों से पर्दा प्रथा का अभाव ज्ञात होता है। वे स्वतन्त्रता पूर्वक पतियों के साथ भ्रमण हेतु जाती थीं। स्त्रियों द्वारा उत्सव में जाने एंव श्रमणों से अपनी शंकाओं का समाधान करने के उल्लेख प्राप्त होते है / जैन कथाओं में प्राप्त उल्लेखों से समाज में नियोग प्रथा प्रचलित होने की
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy