________________ स्वर्गका वर्णन 209 चली गयी है / कहीं सभा-मंडप है, कहीं ध्यान मंडप है, कहीं जिनगुण स्तवन करने का तथा कहीं चर्चा करने का स्थान है / कहीं छत है, कहीं महलों की पंक्तियां हैं, कहीं रत्नमय चबूतरे हैं / द्वारों पर तोरण द्वार हैं / कहीं द्वारों के आगे के भाग में मानस्तम्भ हैं जो ऐसे हैं कि महामानी का मान भी दूर हो जाता है। मानस्तम्भ अत्यन्त ऊंचे हैं आकाश को स्पर्श करते हैं / स्थानस्थान पर असंख्यात मोतियों की, स्वर्ण की अथवा रत्नों की मालायें झूम रही हैं / संख्यात लाखों-करोडों धूप का घडे हैं जिनमें धूप खेई जाती है / स्थान-स्थान पर असंख्यात ध्वजाओं तथा महलों की उत्तुंग पंक्तियां शोभित हैं। महल कैसे हैं ध्वजा कैसी है ? मानों (ध्वजा) के वस्त्रों के हिलने के द्वारा स्वर्ग लोक के इन्द्र आदि देवों को इशारे से बुला रही हैं। क्या कह कर बुलाती हैं ? कहती हैं - यहां आओ, यहां आओ, श्रीजी के दर्शन करो, पूजन करो जिससे महापुण्य उपार्जित होगा, पूर्व के कर्म कलंक को धोओ। ___ कहीं पर्वत जैसे ऊंचे रत्नों के पुंज जगमगा रहे हैं, कहीं रंग भूमियां हैं। कहीं माणिक्य की भूमि है कहीं स्वर्ण चांदी की भूमि है, कहीं भिन्नभिन्न रंग के रत्नों की भूमि है / किसी मंडप में स्तम्भ हीरे के हैं कई पन्ने के हैं, कई अनेक रत्नों के हैं। कोई मंडप स्वर्ण रूपा के हैं। किसी स्थान पर कल्पवृक्षों के वन हैं, कहीं सामान्य वृक्षों के वन हैं / कहीं आगे पुष्पों की बाडी है जिसमें रत्नों के पर्वत, शिला, महल, बावडी, सरोवर, नदी शोभित हैं तथा चार-चार अंगल की हरी दब सर्वत्र हरे पन्ने के सदृश्य महासुगंधित, कोमल, मीठी शोभा दे रही है, मानों सावन-भादों की हरियाली सदृश्य शोभित है अथवा आनन्द के अंकुर ही हैं / कहीं जिनगुण गाये जा रहे हैं, कहीं नृत्य हो रहा है, कहीं राग आलाप कर जिनस्तुति की जा रही है, कहीं देव-देवियां चर्चा कर रही हैं।