________________ 208 ज्ञानानन्द श्रावकाचार कैसे हैं ? तपाये हुये स्वर्ण जैसी रक्त जिह्वा, होंठ, हथेली, पगथली है। स्फटिक मणि जैसी दांतों की पंक्ति तथा हाथ हैं। पांवों के नख अत्यन्त उज्जवल निर्मल हैं। श्याममणि मय महा उज्जवल नरम, महा सुगन्धित मस्तक के केशों की आकृति है। मुडी वक्र मूंछों की रेखा तीर्थंकरों के केशों सदृश्य यथावत शोभित है। __जिनबिम्ब और कैसे हैं ? कई तो स्वर्ण मय हैं, कई रक्त माणिक के हैं, कई हरितमणि पन्ने के हैं, कई श्यामवर्ण मणि के बने हैं / मस्तक पर तीन छत्र विराजमान है मानों छत्र के बहाने तीन लोक ही सेवा करने आये हैं / यक्ष जाति के देवताओं के चौसठ रत्नमयी आकार खडे हैं जिनके हाथों में चौसठ ही चमर हैं / उनमें से बत्तीस श्रीजी के बांयी ओर खडे हैं शेष बत्तीस दांयी ओर हैं / धूपों के अनेक घडे तथा लाखों करोडों रत्नमयी क्षुद्र घंटे हैं / लाखों करोडों रत्नों के दंडों पर कोमल वस्त्र सहित उन्नत ध्वजायें फहरा रही हैं / अनाज के पर्वत जैसे ढेरों की भांति हजारों रत्नों के स्तूप शोभित हैं। जिनमंदिर अनेक चन्द्रकान्त मणियों की शिलाओं की बावड़ियों, सरोवरों अथवा कुंडों, नदी, पर्वत, महलों की पंक्तियों, वन तथा फुलवारियों सहित शोभित हैं / जिनमंदिर और कैसे हैं ? एक बडा द्वार पूर्व दिशा के सन्मुख देखता है, दो द्वार दक्षिण उत्तर की ओर देखते हैं। पूर्व की ओर की रचना सैकडों हजारों योजन आगे तक चली गयी है तथा उसीप्रकार दक्षिण-उत्तर विस्तार में सभामंडप आदि रचना चली गयी है / विशेष इतना है कि पूर्व के द्वार आदि की रचना का जो लम्बाई-चौड़ाई-ऊंचाई का प्रमाण है उससे आधा दक्षिण-उत्तर आदि के द्वार आदि का है / अतः उत्तर द्वार को शल्यक द्वार कहते हैं / समस्त रचना सहित बाह्य चार-चार द्वारों सहित तीन ऊंचे महाकोट हैं / जिनमंदिर के लाखों करोडों अनेक रत्नों से निर्मित महा उतंग स्तम्भ लगे हैं / तीनों ओर सैकड़ों हजारों योजन तक अनेक प्रकार की रचना.