________________ 207 स्वर्ग का वर्णन पालन करेंगे। ये असंख्यात देव-देवांगनायें आपके दास-दासी हैं, उन्हें अपना जानकर अंगीकार कर अनुगृह करें। ऐसे जिनधर्म बिना इसप्रकार के पदार्थ कोई प्राप्त कर नहीं पाता। अत: हे प्रभो! अब शीघ्र ही अमृत के कुंड में स्नान कर, मनोज्ञ वस्त्रों सहित आभूषण पहन तथा दूसरे अमृत कुंड से रत्नमयी झारी भर कर तथा उत्कृष्ट देवोपुनीत अष्ट-द्रव्य अपने कर-युगल में लेकर मन-वचन-काय की शुद्धता कर महा अनुराग सहित महा उत्सव पूर्वक पहले जिनमंदिर में पूजा के लिये चलें फिर अन्य कार्य करें। ___अन्य कार्यों से पहले जिनपूजा करें फिर अपनी संपदा को सम्हाल कर अपने अधीन करें। इसप्रकार अपने निज कुटुम्ब का उपदेश पाकर अथवा स्वयं अपनी इच्छा से अथवा पूर्व की धर्म-वासना से शीघ्र ही बिना प्रेरणा (वह देव) महा उत्सव से जिनपूजन के लिये जिनमंदिर में जाता है। जिन मन्दिर और जिनबिम्ब का वर्णन वे जिनमंदिर तथा जिनबिम्ब कैसे हैं ? वह बताते हैं - एक सौ योजन लम्बे, पचास योजन चौडे तथा पिचेहतर (75) योजन ऊंचे प्रसाद में भीतर पूर्व दिशा की तरफ द्वार वाला उतंग जिनमंदिर शोभित है। मन्दिर के अन्दर एक सौ आठ गर्भ-गृह हैं / एक-एक गर्भ-गृह में तीन कटनियों के ऊपर गंधकुटियां बनी हैं जिनमें भिन्न-भिन्न तथा पांच सौ धनुष ऊंचे एक-एक जिनबिम्ब आसन सिंहासन पर विराजमान हैं / वेदी पर ध्वजा, अष्ट मंगलद्रव्य, धर्मचक्र आदि अनेक आश्चर्यकारी वस्तुओं का समूह है / गंधकुटी कैसी है ? उसमें श्रीजी अद्भुत शोभा सहित विराजमान हैं / एक-एक गर्भ-गृह में एक-एक शाश्वत, अनादिनिधन, अकृत्रिम जिनबिम्ब स्थित हैं। वे जिनबिंब कैसे हैं ? जिनबिम्बों के संस्थान समचतुरस्र हैं तथा करोडों सूर्यो की ज्योति को मलिन करते हैं / गुलाब के फूल के सदृश्य महामनोज्ञ हैं, शान्तिमूर्ति ध्यान अवस्था धारण किये हैं ! जिनबिम्ब और