________________ 184 ज्ञानानन्द श्रावकाचार हे केवलज्ञान सूर्य ! छह द्रव्य, सात तत्त्व, नव पदार्थ, पंचास्तिकाय, चौदह (14) गुणस्थान, (14) चौदह मार्गणास्थान, बीस (20) प्ररूपण, चौबीस (24) ठाणा, व्रतों के बारह (12) भेद, प्रतिमा के ग्यारह (11) भेद, दश- (10)लक्षण धर्म, सोलह (16) कारण भावना, बारह (12) तप, बारह (12) संयम, बारह (12) अनुप्रेक्षा, अट्ठाईस (28) मूलगुण, चौरासी (84) लाख उत्तर गुण, मतिज्ञान के तीन सौ छत्तीस (336) भेद, शील के अठारह (18) हजार भेद, प्रमाद के साढे सैंतीस हजार (37500) भेद, अरिहन्त के छयालीस (46) गुण, सिद्धों के आठ (8) गुण, आचार्यों के छत्तीस (36) गुण, उपाध्याय के पच्चीस (25) गुण, साधु के अठाईस (28) गुण, श्रावक के बारह (12) गुण (व्रत), सम्यक्त्व के आठ (8) अंग, आठ (8) गुण तथा पच्चीस (25) मल दोष, मुनि के आहार के छियालीस (46) दोष, बाईस (22) अन्तराय.- दस (10) मल दोष, नवधा भक्ति, दाता के सात (7) गुण, चार (4) प्रकार के आहार, चार (4) प्रकार का दान, तीन प्रकार के पात्र, एक सौ अडतालीस (148) कर्म प्रकृतियाँ, बंध, उदय, सत्ता, उदीरणा, सत्तावन (57) आश्रव, तिरेपन (53) क्रिया, इनकी षट (6) त्रिभंगी, एक सौ (100) पाप प्रकृतियां, अडसठ (68) पुण्य प्रकृतियां (वर्ण की बीस प्रकृतियां पुण्य तथा पाप दोनों रूप होने से दोनों में गिनी जाती हैं ), घातिया कर्मो की सैतालीस (47) प्रकृतियों में सर्वघाति प्रकृतियां इक्कीस (21) तथा देशघाति प्रकृतियां छब्बीस (26), क्षेत्र विपाकी चार (4) प्रकृतियां, भव विपाकी चार (4), जीव विपाकी अठहतर (78) प्रकृतियां, पुद्गल विपाकी बासठ (62) प्रकृतियां, दस (10) करण चूलिका, नव (9) प्रश्न चूलिका, पांच (5) प्रकार भागाहार, स्थिति-अनुभाग-प्रदेश-प्रकृति बंध इत्यादि इनका भिन्न-भिन्न निरूपण आपने ही किया है तथा उपदेश दिया है / अन्य अनुयोगों का कथन :- प्रथमानुयोग, करणानुयोग,