________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [67 वसु द्रव्य मिलावै अर्घ बनावै, जिनवर पगतल धारत हैं। शिवपदकी आशा मन हुल्लासा, चहु गत बाशा टारत हैं। मेरु सुदर्शन.॥१०॥ ॐ ह्रीं.॥अर्घ // __ अथ प्रत्येकार्घ-सोरठा मद अवलिप्त कपोल छन्द मेरु सुदर्शन दक्षिण दिशमैं, तप्त हेम द्युति निषध सुनाम। तिगंछ द्रह द्रह बिच पंकज, कमल बीच धृतदेवी धाम॥ सिंह गिरिशिखरकूट नौ उन्नत, ताबीचसिद्धकूटअभिराम। तहां जिन भवन निहार धार, उर अर्घ चढावत शीस नमाय॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश निषध पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // मेरु सुदर्शन दक्षिण दिशमैं, स्वेत महाहिमवन गिरनाम। महापद्म द्रह द्रह बिच नीरज जलज बीच ह्रीं देवी धाम॥ ता गिरिशिखरकूट वसुशोभित,तिंह बिचसिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर अर्घ चढावत शीश नमाय॥ __ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश महा हिमवन पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शनको दक्षिण दिश, हेमवरण हिमवन गिरनाम। पद्मद्रह बीज पद्म है पद्म बीच श्री देवी धाम॥ गिरके शिखर कूट एकादश सिद्धकूट तिह बीच सु ठाम। तहां जिनभवन निहार धार उर अर्घ चढावत शीश नमाय॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश हिमवन पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // मेरु सुदर्शनकी उत्तर दिश, नीलवरण गिर नील सु नाम। द्रह केसरी कमलकर शोभित तहां कीर्तदेवीको धाम॥