________________ 66 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान depeed ed ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश निषध॥१॥ महाहिमवन // 2 // हिमवन // 3 // उत्तरदिश नील // 4 // रुक्मनि // 5 // शिखर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ जलं॥ मलयागिर चंदन दाह निकंदन, केशर डारी रंग भरी। भव ताप निवारन निजपद धारन,शिवसुख कारन पुज करी॥ मेरु सुदर्शन. // 3 // ॐ ह्रीं. // चन्दनं॥ सुखदास कमोदं अति अनमोदं, उपमा द्योतं चन्द्रसमं। जिनचरण चढावें मन हरषावें, सुरपद पावै मुक्ति रमं॥ मेरु सुदर्शन.॥४॥ ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी वेल चमेली, ले गुलाब धर जिन आगे। जिनचरण चढावत मनहर पावत, कामबान तत क्षिण भागै॥ ___ मेरु सुदर्शन. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नेवज ले नीको तुरत सुधीको, श्री जिनवर आगे धरिये। भर थाल चडावो जिनगुण गावो,शीस नवावो, शीव वरिये। मेरु सुदर्शन.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ मणिमई दीप अमोलक लेकर, जगमग जोत सु होत खरी। मोह तिमिरके नाश करनको, श्री जिन आगै भेट धरी॥ मेरु सुदर्शन.॥७॥ ॐ ह्रीं. // दीपं॥ कृश्नागर धूपं जज जिन भूपं, लख निज रूपं खेवत हैं। वसु कर्म जलावैं पुन्य बढावै, दास कहावै सेवत हैं। मेरु सुदर्शन.॥८॥ ॐ ह्रीं.॥धूपं // बादाम छुहारे लौंग सुपारी, श्रीफल भारी कर धरके। जिनराज चढावै शिवपद पावै, शिवपुर जावै अघ हरके। मेरु सुदर्शन. // 9 // ॐ ह्रीं.॥ फलं॥