________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [59 जगमग जोत होत मंदिर, मणिमई दीप अमोलक लाय। मोह तिमिरके नाश करनको, भविजन पूजो श्री जिनराय॥ मेरु सुदर्शन.॥७॥ ॐ ह्रीं. // दीपं // कुश्नागर वर धूप दशांगी, खेवत जिनचरणन ढिग जाय। हाथ जोड प्रभु सन्मुख ठाढे, गावत जिनगुण मन हरषाय॥ मेरु सुदर्शन.॥८॥ॐ ह्री. ॥धूपं॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, ऐला दाख छुहारे लाय। भाव सहित श्रीजिनवर पूजों, शिवसुन्दरको व्याहों जाय॥ ___मेरु सुदर्शन.॥९॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल आठों दरब सु लेके, अर्घ चढ़ावत श्री जिनराय। बल बल जात लाल चरणपर, पूजत भाव भक्त उर लाय॥ मेरु सुदर्शन.॥ ॐ ह्रीं. ॥अर्घ // अथ प्रत्येकार्घ-कुसुमलता छन्द मेरु सुदर्शनकी दक्षिण दिश, भरतक्षेत्र सोहें अभिराम। तहां पड़ो बैताड मनोहर, रूपावत रूपाचल नाम॥ ताके ऊपर सिद्धकूट है, तहां अकीर्तम जिनधाम। सुर विद्याधर पूजत वसुविध, हम पूजत ले अर्घ सु ठाम॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबन्धी रुपाचल सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // ___ अथ जयमाला-दोहा प्रथम मेरु दक्षिण दिशा, भरतक्षेत्र सुविशाल। रूपाचलपर जिन भवन, सुनो सु भवि जयमाल॥१२॥