________________ 58] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ធនធានធនធានធនធាន तहां पढ़ो बैताड़ मनोहर तिनपर श्रीजिन भवन विशाल। आह्वानन विध तिनकी करकै, श्रीजिनचरण नवावत भाल॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनम्। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द क्षीरोदधि का उज्जल जल ले, श्री जिनचरण पूजत जाय। जन्मजरा दुःख दूर करनेको शीश नबावत अभि सुख पाय॥ मेरु सुदर्शन दक्षिण दिशमें, भरतक्षेत्र सुन्दर अभिराम। जहां बताड मनोहर सोहैं, तहां जजो जिनवरके धाम॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ जलं॥ चंदन अरू कर्पूर मिलायके, केसर लावत रंग भरी। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, भव आताप सो दूर करी॥ मेरु सुदर्शन. // 3 // ॐ ह्रीं. // चन्दनं॥ मुक्ताफल सम अक्षत उजल, पुंज देत अति मन हरषाय। अक्षयपद पावत तहां भविजन,जिन चरणांबुज मस्तक नाय॥ मेरु सुदर्शन.॥४॥ ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कुसुम तरुके वेल चमेली, श्रीगुलाब महके सुखदाय। सुर नर विद्याधर सब ले ले, श्री जिनचरण चढावत लाय॥ ___मेरु सुदर्शन.॥५॥ ॐ ह्रीं. // पुष्पं // बावर घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत सु लेत बनाय। क्षुधा रोगके दूर करनको, जजत जिनेश्वर मंगल गाय॥ मेरु सुदर्शन.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥