________________ [37 श्री तेरहद्वीप पूजा विधान vnununununununnnnnnnnnnnn अथ प्रत्येकार्घ (सोरठा) प्रथम कूट पश्चात्, नाम सरस मन मोहनो। देखत मन हर्षाय, जिनमंदिर तापर जजो॥१०॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पश्चात् नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // चित्रकूट अभिराम, नाम कहो मन लायके। तापर जिनवर धाम, पूजत मन हर्षायके // 11 // ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी चित्रकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // पद्मकूट सुखकार, तापर जिनमंदिर बनो। मैं पूजू हित धार, श्री जिनवर प्रति निरखके॥१२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पद्मकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ नलिनकूट सुविशाल, जिन मंदिर कर सोहनो। मैं पूजूं त्रैकाल, जगजीवन मन मोहनो॥१३॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी नलिन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // है त्रिकूट जो नाम, महिमा ताकी को कहें। परम महा अभिराम, जिनमंदिर पूजो सदा॥१४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी त्रिकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // प्राच्य कूट है नाम, रतनमई जगमग लसै। तापर जिनवर धाम, मैं पूजू वसु द्रव्य ले॥१५॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी प्राच्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ /