________________ 38] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान कूठ वैश्रवण नाम, महा मनोहर मन हरै। जिनमंदिर अभिराम, पूजो मनवचकायसों॥१६॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वैश्रवण नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ अंजनगिर वक्षार, तापर मंदिर जानिये। महिमा अगम अपार, आठ दरव ले पूजिये॥१७॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी अंजना नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा मेरु सुदर्शन पूर्व दिशि, गिर वक्षार विशाल। तिनपर जिनमंदिर बने, सुन तिनकी जयमाल॥१८॥ पद्धडी छन्द जै मेरू सुदर्शनकी सुजान, पूरव दिश क्षेत्र विदेहमान। तहं तीर्थंकर राजें मुनीश, तिनको हम नावत हैं सु शीश॥ श्रीमंदर जुगमंदर सु देव, सुरनर मिल तिनकी करत सेव। जै जिनवाणी ध्वनिखिरै सार,भवि जीव सु नैं आनंद धार॥ केईदिक्षा धारकियो कर्मनाश,पावै शिवपुर अविचल अवाश। केई बारह व्रत धर देव होय केई श्रावकके व्रत धेरै सोय॥ तहां काल चतुर्थ विराजमान, सब कर्मभूमि रचि रही जान। तहां गिर वक्षार बने सु आठ, तापर जिनमंदिर कहे पाठ॥