________________ 34] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ផលជលផលផ= == == ===== पद्धडी छन्द जै मेरुसुदर्शन ढिग सुजान, उत्तर अरू दक्षिण दिश बखान। जै शोभित दोऊ वृक्ष सार, जम्बू अरू सालमली निहार॥ तिनपर जिनभवन बनो विशाल,पूजत सूर विद्याधर त्रिकाल। वेदी पर कटनी दियै सार, वसु मंगल द्रव्य धरे विचार॥ सिंहासन अद्भुत शोभमान, तापर सु कमल राजै महान। तापर जिनबिंब बिराजमान शजि सूरक्रांति छबिछीण जान॥ धारे सिर छत्रसु तीन सार, त्रिभुवनके ईश्वर है निहार। जै चमर दुरै चौसठसु सार, सब देव करै जै जै पुकार॥ भामंडलकी छबि रहि छाय, भवि सात भवांतर लखै आय। जहँ रत्न अमोलक जगमगाय, खेवर खेचरनी नचैं आय॥ जिनराज रूप नैनन निहार, विंतर गुणगान करै अपार। तहं द्रुम द्रुम द्रुम बाजत मृदंग, इन्द्रानि इन्द्र नचैं जु संग॥ बहु पुन्य उपावत देव आय, निज जन्म सुफल अपनो कराय। जिनराज सगुण महिमा अपार,भविलाल कहतपावैन पार॥ घत्ता दोहा-जिनगुण महिमा अगम है, को पावै तसु पार। भूप वृक्षपर जिन भवन, मन वच तन उर धार॥ सोरठा-जिनगुण गूंथ सवार, विविधवरण माला रची। ते उतरें भवपार, निज गुणमाल संवार ही॥२३॥ इति जयमाला